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अध्याय नवां। एक नवयुवकने तुर्त परस्त्रीत्यागका व्रत लिया। फंडके लिये कहा गया तो रा० रा० चिमप्पा अण्णा लेंगड़ने ५०१) तुर्त रोकड़ा दिये, करीब २०००) की भरती हुई। किसीने नए आंकड़े भरे । रा० रा० प्रवाणेने १०० ) ग्रंथ स्वाध्यायार्थ बांटनेके लिये देना कबूल किये। वास्तवमें शास्त्रदान बहुत कल्याणकारी है। सर्व मंडलीसे सत्कार प्राप्त कर रुपया एकत्र कर दोनों सेठ, लट्टे और अन्य लोग कोल्हापुर गये। वहां रा ० रा ० भैर सेठ, पाटील मजिस्ट्रेट, शास्त्री कल्लाप्पा भरमप्पा निटचे आदिने स्वागत किया। प्रो. बीनापूरकरने सेठजीको बुलाकर पानसुपारी की। यहां उस समय डकन कालेनके प्रोफेसर पाठक श्री लक्ष्मीसेन स्वामीके मठमें ग्रंथ देखने आए थे । यहांसे किणीसगांव गए । यहां ८००) रु० जमा हुए, फिर वडगांव गए, वहां २३२) रु० एकत्र किये । किणीसमें गरीब जैन बालक विद्या पढ़े इसके लिये एक शिक्षक रखनेका खर्च सेठ हीराचंदने देना कबूल किया। फिर कोल्हापुर आए । रा० रा० आपा दादा गोंदा पाटीलकी अध्यक्षतामें उपदेश हुआ। पाटीलजीने ४००) शिक्षण फंडमें देना कबूल किये। यहाँपर हीराचंदजीकी रायसे सेठ माणिकचंदजीने
विद्यालयके लिये एक सुंदर इमारत तय्यार कोल्हापुर बोर्डिगकी कराना स्वीकार किया तथा महाराज कोल्हाइमारत बनानेकी पुरकी जब भेट हुई तब सर्कारने भी यथाशक्य स्वीकारता। मदद देना कबूल करके चौफाल्याके मालाकी
जगह इमारतके लिये दान की। इस काममें दीवान साहब, रा० सा० सावंत मामलेदार, बापूसाहब आदिने खूब परिश्रम किया।
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