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________________ लक्ष्मीका उपयोग । [ १९५ शहरुसै चिठी आई। आपनै सर्वको खबर दिई आपकी तारीफ कहांतांई लिखें 1 ,, सेठ माणिकचंदने अंकलेश्वर निवासी धर्मचंदजीको खास पत्र देकर सूरत बुलाया था यह वही धर्मचंद है जिन्होंने सं० १९३४ में अंकलेश्वरकी त्रिलोक पूजा विधान के समय सभामें श्रीयुत त्यागी महाचंद्र कृत भजन गाया था और जिसकी नकल सेठ माणिकचंद कों भेजी थी। धर्मचंद नृत्य व गानमें बहुत चतुर थे। सूरतकी इस प्रतिष्ठामें इन्होंने अपने भजनोंसे खूब भक्ति दरशाई जिससे नरनारियों का चित्त धर्मप्रेम से भर गया । एक दिन धर्मचंदने सेठ माणिकचंदजीसे एकान्त में कहा कि मैं एक छोटेसे ग्राम में पड़ा हुआ हिंसाका धन्धाकर रहा हूँ, आप मेरे लिये कुछ काम बताओ जिससे मैं इस हिंसा से बचूँ । सेठ माणिकचंदजीने इस धर्मात्माकी बातको अपने हृदय में घर लिया और उनसे कहा कि तुम कोई चिन्ता न करो, हम विचार करेंगे । इस उत्सव में मंदिरजीको ८०००) की उपज बोली में हुई, उसको सेठ माणिकचंदने जमा कर बम्बई में एक मकान खरीद इसको अब २००००) के करीब तक पहुंचा दिया है । इस वक्त प्रेमचंद और फुलकुमरी ५ वर्ष और मगनमती ३ वर्षकी थीं। इन तीनों को ऐसे मनोहर वस्त्राभूषणोंसे अलंकृत किया गया था कि जो हज़ारों जैन नरनारी सूरत में आए थे वे इनको देखकर मोहित हो जाते थे । सवोंके गलेमें मोतियोंके हार व हीरेके कंठे - बहुत ही शोभाको विस्तार रहे थे । जो सेठ हीराचंदकी पूर्व स्थितिको जानते थे वे इन बच्चोंको देखकर सेठ हीराचंद के उद्योगशील 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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