SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ ] अध्याय पहिला | उनसे कुछ भी लाभ नहीं उठा सक्ते । करोड़ों मनुष्य इस संसार में ऐसे हैं जिनकी शक्तियां शिक्षा, योग्य उदाहरण व योग्य सहारेके बिना यों ही पड़ी रहती हैं । जिनकी शक्तियोंको शिक्षादेवीकी उपासना नहीं मिलती है वे यों ही रह जाते हैं, कोरे पशुसम जीवन काटते हैं। भारत में करोड़ों मनुष्य इसी रंगके हैं। शिक्षा शक्तियोंको खिलाती है, उन्हें मजबूत करती है, उनसे उपयोग लेना बताती है । मानवको जब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थोंकी सिद्धि करनी है तब उसको शिक्षा भी ऐसी ही मिलनी चाहिये जो चारों साधनोंमें सहायक हो । यदि वह शिक्षा इनमें से किसी एकको भी हानि करनेवाली होगी तो वह शक्तियोंको उन्मार्ग में उपयुक्त करनेकी तरफ प्रेरणा करेगी । और इसका फल प्रायः ऐसा भी हो जायगा कि वह शिक्षाके होनेपर शिक्षाविहीन रहनेकी अपेक्षा अपनी अधिक हानि कर बैठेगा। इस कारण इन ऊपर कहे हुए चारों वर्गों को साधने में सहायक जो शिक्षा है वही सुशिक्षा है । यही सुशिक्षा मानवकी शक्तियोंको ऐसी चमत्कृत बनायेगी कि जिसे वह जगत के उपकार करने के सिवाय अपना भी उपकार कर लेवेगा । केवल पुस्तकोंके पढ़ने वा रटनेको शिक्षा नहीं कहते - जिस रीतिसे मनुष्यको अपनी मानसिक, वाचनिक और कायिक शक्तियोंको उपयोगी मार्गमें ले जाकर उनसे यथोचित स्वपर उपकारक कार्य लेनेकी योग्यता आजाय वही रीति सुशिक्षा है। जगतमें तीन तरह के मनुष्य होते हैं - उत्तम, मध्यम और जघन्य । उत्तम मनुष्य वे ही हैं जो प्रत्येक कार्य्यको विचारपूर्वक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy