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अध्याय दूसरा ।
सूरत नगर
बहुतसे जन इस नगरको सुर्यपुरके नामसे पुकारते हैं तथा नर्म गद्य कर्ताने मी लिखा है कि सूरतसे ८ गांव दूर कामलेज ग्रामके निवासी एक राजाके बड़े २ कैसे वसा ? प्रसिद्ध कुए थे । उनमें एक सूरजवाड़ी नामका कुआ था । उसी वाड़ीके नामसे यह सुरजपुर या सुर्जपुर कहलाता था जो फिर बिगड़के सुरत हो गया । ५वीं गुजराती साहित्य परिषद् सन् १९१५की बैठककी स्वागत कारिणी कमिटीके प्रमुख रा० मधुवचराम बलवचरामने अपने व्याख्यानमें यहांतक अनुमान लगाकर प्रगट किया है कि सन् ईसवी वीसहजार २०००० वर्ष पहले भी यह स्थान आबाद था । आपने अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान् प्रोफेसर डेंटन-कृत “ The Soul of things" नामकी पुस्तक के आधार से लिखा है कि यूनानका विद्वान् प्लैटो अपने किसी पूर्व जन्ममें इसी (सुरत) स्थानके किसी बड़े मंदिरका मुख्य अधिकारी या भक्त था । रामाला के प्रथम भाग आधारसे आप लिखते हैं तत्र सूर्यपुर कहलाता था जिस समय सन ९०० में अब हड़वाली सेना भरुच और सूर्यपुरके आगेसे होकर निकली थी। सन् १९०८ के इम्पीरियल गैजेटियरसे मालूम हुआ कि सन् १९५० में होनेवाले यूनान के विद्वान् प्लोटे ने पुलिपदा नामके व्यापारिक स्थानका वर्णन किया है जिसका नाम शायद फुलपाद होना चाहिये और यह स्थान इसी सूरत नगरका एक पवित्र भाग है ।
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कि यह स्थान
जो कुछ हो इसमें सन्देह नहीं कि सुरत और रांदेर दोनों ही अतिप्राचीन नगर ताप्तीके इधर उधर एक शोभनीक स्त्रीके कार्णेमें पड़े हुए सूर्य और चंद्रकी कांतिवत् चमकते हुए मनोहर कुंडलोंकी भांति दीर्घ कालसे शोभा पा रहे थे ।
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