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________________ NA ..'.'VVVVVVUNNY. ६८२] अध्याय बारहवां । फिर बोर्डिगका मकान सेठजीने खोला। ८ छात्रोंको रत्नकरंड श्रावकाचारका पाठ दिया गया। सेठनीने १०१)का दान दिया उसी समय अनुमान ९००) रुपयेकी आमदनी हो गई। सेठजीको इस नवीन बोर्डिंगके स्थापनसे और भी आनन्द हुआ। वास्तवमें आत्म समाधि जब परमानन्द प्रदायक है तब उसके मुकावलेमें शुभोपयोगमें चित्तका आल्हाद होना भी आनन्ददायक और पुण्यवर्धक है । जो केवल इन्द्रियों के विषयोंसे सुख मानते हैं उन्हें इन शुभ कार्योंसे पैदा होनेवाले स्वाभाविक आनन्दोंकी ओर दृष्टिपात करना चाहिये । जब कि विषय सुखोंमें आत्मिक व शारीरिक शक्तिका क्षीण करना है तब इस स्वाभाविक आनन्दमें दोनों शक्तियोंको बढ़ाना है। सेठजी तीर्थोके सुधारके भी अनन्य भक्त थे । आप श्री गिर नारजीके सुधार में लगे हुए थे। श्रीशिखरजी श्री गिरनार क्षेत्रके पर सेठ हुकमचंदजीके उद्योगसे प्रबन्धकर्ता सुधार के लिये पर- बंड़ी मन्नालालजीने नियमावली व योग्य तापगढ गमन। रीतिसे कमेटी करना व योग्य प्रबन्ध करना स्वीकार कर लिया था, परन्तु उसके अनुसार कोई कार्रवाई जब नहीं हुई तब ता० ५-६-१० को तीर्थक्षेत्र कमेटीने अपने सभासदोंसे प्रस्ताव पास करा लिया कि अदालती कार्रवाई की जावे तो भी पत्र व्यवहार होता रहा कि किसी तरह समझ जावें चूंकि अदालतमें बहुत परेशानी व खर्च पड़ता है। सेठजीने एक दफे यही विचारा कि हम स्वयं परतापगढ़ नाकर निवटारा करें, यदि काम सीधा न हो तब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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