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________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [ ६८३ अदालत से निबटा जाय । अतएव आप मूलचन्द किसनदास कापड़िया सम्पादक “दिगम्बर जैन " को लेकर रतलाम दोपहरको ता: ३० जून ११ को पहुंचे। यहां सेठजी बोर्डिंग खोलना चाहते थे सो घूमकर मकानोंको तलाश किया। फिर लौटकर आनेका निश्चय कर आप सांझको ही चल कर रात्रिको इन्दौर पहुंचे । सेठ हुकमचंदजीने भले प्रकार स्वागत किया । ताः १ जुलाईको ६ मंदि - रोंके दर्शन करके सेठ हुकमचंद बोर्डिंग देखी । १७ छात्र माष्टर दर्यावसिंह सोंधिया की सम्हाल में थे । इस छात्राश्रम में प्रति छात्रको ६) मासिक छात्रवृत्ति मिलती थी । हरएक अपने हाथसे रसोई करता था । रात्रिको १० की गाड़ीसे सेठ हुकमचंदजी और लाला हजारीलालजी को लेकर ताः २ जुलाईको सवेरे मंदसोर पहुंचे। वहां रु. १५०००) खर्च कर जो मनीराम गोरधनवालेने नई धर्मशाला बनवाई थी उसमें ठहरे। यहां अच्छा स्वागत हुआ। यहांसे मंदसोर के तीन मुख्य भाईयों को लेकर २० मील परतापगढ़ दोपहर को १ बजे पहुंचे । सेठ कस्तूरचंद तलेटी के यहां ठहरे । बंडी मन्नालालजी आदिसे मिले। रात्रिको ८ बजे कमेटी हुई जिसमें यहां के खास २ भाई बुलाए गए। वादविवाद के पीछे जो नियमावली छपी थी उसमें नियम ठीक किये गये और वह नियमावली छपाने के लिये मूलचन्दजीको सौंप दी गई । इस नियमावलीके नवीन कार्यकर्ताओंने प्रबन्ध करना स्वीकार किया । सभापति सेठ गुमानजी और बंडी मन्नालालजी, कोषाध्यक्ष और उपसभापति सेठ कस्तूरचंद तलहटी, मंत्री शाह कपूरचंद अमृतलाल खासगीवाले व उपमंत्री शाह गुमानजी जवाहरलाल हुए । नियमावली में नियम हुआ कि १०००) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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