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सन्तति लाभ ।
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मंडल पुरुषाकार बनाया गया। प्रतिदिन श्रीयुत महाचंद्रजी बहुत गाजे बाजेके साथ स्वयं उस अपनी बनाई भाषा पूजनको पढ़ते थे। तीन लोकके अकृत्रिम चैत्यालयोंकी पूजनके समय स्थापना उस मंडलमें ठीक उसी स्थानपर होती थी नहीं कि चावलोंसे वह स्थान निर्देश किया गया था । छोटे २ लकड़ीकी स्थापनाएं उतनी ही बनाई गई थी, जिनपर रकाबी रखकर स्थापनाके समय नियत स्थानपर रक्खी जाती थीं। बाहरसे आसपास ग्रामोंके बहुत भाई आते जाते रहते थे। - इस समय कारणवश सेठ माणिकचंदजी बम्बईसे सूरत आए।
वहाँ अंकलेश्वरकी पूजा समारंभकी बात सुनकर अंकलेश्वरकी पूजामें व त्यागी महाचंद्रके दर्शनकी भावना करके सेठ माणिकचंद। सेठ माणिकचंदजी अंकलेश्वर आए। पूजन
समारंभ देख व महाचंद्रजीके दर्शन प्राप्तकर आप बहुतही राजी हुए । रात्रिको मंडपमें खूब भजनगान हुआ करता था। गंधर्व भी आए थे। अंकलेश्वरसे ६ मील एक सनोत ग्राम है वहाँपर एक अति
प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर है जिसके भौरमें सजोतके शीतल- चतुर्थकालको बहुत ही शांत वीतरागमई नाथजी। पद्मासन ३ हाथ उंची श्री शीतलनाथ
स्वामीकी प्रतिबिम्ब विराजमान है। इस बिम्बके दर्शनसे लेखकको जो आनन्द हुआ है वह बचन अगोचर है।
उस सजोतमें एक मेवाड़ा दि. जैनी धर्मचंद हरजीव
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