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________________ १६६ ] अध्याय छठा। नदास फुटकल अनाजकी दूकान करते हुए धर्मचंदजीका सेठसे रहते थे। इनको भजनभाव व नृत्यका शौक था। श्री शीतलनाथजीके सन्मुख भजनभाव करते हुए आनन्द मनाते थे। यह धर्मचंदजी धर्मके बड़े रोचक थे। पहले लड़कईमें तो इनको धर्मसे कुछ भी प्रेम नहीं था इसके दो वर्ष पहले महुवा निवासी एक खंडेलवाल विद्वान् जैन पंडित शिवलालजीने अंकलेश्वरमें चातुर्मास किया था। यह पंडित बहुत विद्वान् व गंभीर ध्वनिके थे। शास्त्र सभा प्रतिदिन करते थे और सर्व लोग सभामें जाते थे। धर्मचंद दिलमें रुचि न रखनेपर भी शर्मके मारे शास्त्रमें बैठ जाते थे और ज्यों त्यों कर समय पूरा करते थे पर पंडितजीकी दृष्टि धर्मचंद पर जम जाती थी। जिसदिन यह नहीं जाते दूसरे दिन पंडितजी टोकते थे। इसपर अधिक भाव होनेका कारण यह था कि धर्मचंदके पिता हरजीवन रतनचंद शास्त्रके जानकार व शास्त्रानुसार आचारके पालनेवाले तथा पंडित शिवलालके मुलाकाती थे । एक गुण इनमें यह था कि यह भनन गान व कवितामें चतुर थे। अपने घरके चैत्यालयमें नित्य खूब गागाकर पूजन करते थे, इसी कारण इनके पुत्र धर्मचंदको भी शुरूसे ही गाने बजानेकी रुचि हुई। यह परोपकारी भी थे । अंकलेश्वरके . १०, १२ लड़कोंको अपने घरमें भक्तामर सूत्रनी पूजा पाठ आदि पढ़ाते थे । इन्होंने रवित्रत कथाका हिन्दीमें एक नाटक बनाया है जिसका नाम रविव्रत आख्यान है। इस नाटकको यह मंदिरजीमें खेलते थे । सर्वस्वांग कायदेसे भरवाते थे। कई इनके साथी भी थे। जिस स्थानपर मुनिका वर्णन आता है वहां नग्न मुनिका भेष न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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