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________________ जीवन चरित्रकी आवश्यकता । [ ९ कार्यके फलको पहले से ही विचार ले और गंभीरता से सोच ले । जो गंभीर विचार नहीं कर सक्ते वे प्रायः अपने कार्यमें विफल हो जाते हैं 1 (४) इन्द्रिय-पराजय - पांचों इन्द्रियोंकी चाहनायें मनुप्यको जब अपना दास बना लेती हैं तब वह उपयोगी कामों से हठ करके उनकी पूर्ति करनेमें लग जाता है जिससे उसका जीवन इन्द्रियोंके दासत्वमें पड़कर बेकार हो जाता है । जो उपयोगी काम करना चाहते हैं वे हमेश: अपनी इन्द्रियोंपर काबू रखते हैं । वे सही-सलामत रहे ऐसी भावनासे उन्हें भोजन - पानादि देते हैं और उनसे खूब काम लेते हैं। मुंहका चटोरापन, मेले तमाशेकी दौड़धूम, नाच - रंगकी चटक-मटक, अतर-फुलेलकी महक आदिसे उनका दिल गन्दा नहीं होता है । (५) सहनशीलता - जगतमें रहते हुए और किसी भी कामकी सिद्धि करते हुए अपने सिवाय और बहुत से लोगोंसे काम पड़ता है। उनके साथ व्यवहारमें कभी २ कठोर शब्द व अनुचित वर्ताचका भी सामना हो जाता है । उस वक्त अपने भावों को सम्हालने और क्रोध न करनेकी बहुत बड़ी ज़रूरत है । जिनमें किसी बात को सहनेकी शक्ति नहीं होती वे हेल-मेलसे नहीं रह सक्ते और न दूसरों से कोई लाभ ले सक्ते हैं । सहनशीलताके गुणसे आदमी जगत् भरको अपने वशमें कर सत्ता है । यह भी कार्यसिद्धिका एक अमूल्य गुण है । (६) धैर्य्य - यह गुण भी बहुत ज़रूरी है। धैर्य्यके बिना कोई काम पार नहीं उतर सक्ता । किसी कामकी सिद्धिका यत्न करते हुए बहुतसे विघ्न व संकट व चिन्तायें उपस्थित होती हैं उस For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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