________________
अध्याय तेरहवां |
पुनि गह अयोग गुनठान, कर्म बसु टारे ॥ वे केवलज्ञान उपाय, तत्त्व परकाशें | हों मुक्ति बधूके कंत भ्रमण भव नाशें ॥ १७ ॥ तसु शेष सकल परिवार, बंधु सुत नारी । लहि शोक सिंधुसे पार, धैर्य दृढ़ धारी ॥ करि करि तिनको अनुकरण, करणसे दानी | बनि बनिकें होर्वे 'मूलचन्द' सुख खानी ॥ १८ ॥ मूलचन्द बड़कुर जैन, दमोह |
८३४ ]
"दिगंबर जैन" के कितनेक शोकजनक लेख ।
****
दिगंबरीनो दीवो बुझाई गयो !
आ परिवर्तनशील संसारमां जीवधुं अने मधुं सर्वनी साथ लागेलुं छे. जे मेरे छे ते पुनर्जन्म ले छे अने जे जन्मे छे ते निश्चय एक दिवस मरशेन, पण जे पुरुषना जन्मथी देश, धर्म, जाति अने कुलनी उन्नति थाय तेबाज पुरुषनुं जीववुं सार्थक छे अने तेन पुरुष इतिहासमा अमर नाम करी जाय छे.
....
....
दिगंबरीना राजा ।
आ दानवीर सेठथी आखा हिंदनो एक पण जैन अजाण्यो नहि होय, केमके एमनी दानवीरता अने आखा हिंदना जैनो प्रत्येनी एकसरखी प्रिय लागणीथी शेठ माणेकचंदजीनुं नाम सर्व स्थळे घरगथुन हतुं. दिगंबरीमां एमना करतां विद्या अने समृद्धिमां
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org