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अध्याय ग्यारहवां ।
२५ जून १९०७ को बाबू देवकुमारजीके सभापतित्त्वमें बोर्डिगके. वार्षिकोत्सवकी सभा हुई। रिपोर्ट सुनकर सर्व भाई कार्यसे बहुत प्रसन्न हुए और उसी समय २०८५) का चंदा हो गया, जिसमें १०००) सेठजी व १०००) सिंगई नारायणदासजीने दिये । विदेशी गरीब छात्रोंको वहीं सहायता देनेके लिये १०००) के करीब छात्रवृत्ति फंड हुआ । इसमें भी सेठनीने २५०) और बाबू देवकुमारने ५१) दिये। बाबू देवकुमारजीके छोटे भाईकी विधवा स्त्री चंदाबाई वैष्णव
धर्मसेवी वृन्दावननिवासी माता पिताकी पुत्री जबलपुर में स्त्री होकर भी देव समान धर्मात्मा देवकुमारके सभाएं। कुलके प्रसंगसे व अपने पूज्य पिता बाबू
नारायणदास बी. ए. द्वारा दी हुई हिन्दी और संस्कृत विद्याके ज्ञानबलसे जैनधर्मकी परीक्षा कर उसे ही अपने जीवनका दृढ़तासे आभूषण बनाकर जैन स्त्रीप्तमाजमें ज्ञानप्रचारकी भावना करनेवाली भी मौजूद थीं। ता० २३, २५, २९ को स्त्रीसभाएं बड़े जोर-शोरके साथ हुई जिसमें ललिताबाई मगनबाई व चंदाबाई तथा अन्य जबलपुरकी बाइयोंके व्याख्यान हुए। कन्याशा-- लाएं यहां चल रही थीं। परीक्षा लेकर पारितोषिक बांटा गया व २८१॥) का नवीन चंदा भी स्त्रीसमाजने दिया। लेडी सुप० ट्रेनिंग कालेज भी ता० २६ जूनको पधारी थीं। बाबू देवकुमारजीके प्रयत्नसे जबलपुरमें शिखरजीके उपसर्ग
निवारणार्थ एक बृहत् सभा हुई। एक जबलपुरमें शिखर- कमेटी बनी । सिंगई नारायणदासजीने जीकी सभा। संस्कृतशाला खोलना स्वीकार किया व एक
भोजनालय भी खोला, जिससे असमर्थ दिगम्बर जैनी ३ दिन तक भोजन पा सकें। सेठ माणिकचंदनी
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