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________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग | सेठजी श्रीमती मगन बाईजी और सेठ हरीभाई देवकरणजी बाले जीवराज बालचंदके साथ काशी ता० सेठजीका दौरा काशी १-११-११ को आए। ब्र० शीतलऔर जबलपुर । प्रसादनी भी सेठजी के साथ थे। स्याद्वाद महाविद्यालयका प्रबन्ध संतोषजनक पाया। दिहलीके बाबू नंदनिशोरजी ३ मास पहलेसे आकर प्रबन्धकी देखभाल रखते हुए यहां विद्याध्ययन करते थे। प्रबन्यसे प्रसन्न हो जीवराजने २५०) प्रदान किये तथा सेठ कल्याणमल इन्दौर ने प्रयागसे १००) की सहायताका वचन सेठजीको दिया था। यहांसे सेठजी जवलपुर आए । इस समय सिंघई नारायणदा सजी बीमार थे । शरीर बहुत अस्वस्थ था। जबलपुर बोर्डिंगको सेठनीने लक्ष्मीका उपयोग बोर्डिङ्गके निमित २००००) नकद करनेके लिये उपदेश दिया उसी समय और एक बंगला- आपने एक बंगला जिसकी आमद करीब का दान। १५०)के मासिक है तथा २००००) नकद बोर्डिंग और धर्मशाला बांधनेको निकाल दिये जिसका प्रबन्ध सेठनी व अन्य चार जबलपुरके भाइयोंकी ट्रष्टोमें सौंप दिया । वार वार उपदेश कभी न कभी अवश्य अपना फल दिखलाता है। सिंघई नारायणदासजीसे जब कभी सेठनी मिलते ये लक्ष्मीके सदुपयोगका उपदेश दिया करते थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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