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________________ १५२] अध्याय पाँचवाँ । निला शोलापुर निवासी दोभाडा देवचंद जीवराज बम्बई आकर मिले और अपनी पुत्री प्रसन्नकुमरीका वर्णन किया । हीराचंदजीने जन्मपत्र दिया और लिया तथा पुत्रीके देखनेकी इच्छा प्रगट की । देवचंदजीने कहा-मैं दो मास बाद बम्बई आऊंगा तब मैं उसे लेता आऊंगा । यद्यपि वह ११ वर्षकी है पर शरीर ठिंगना है । मैं आपके पास ही उसे उस समय ले आऊंगा जब आपके पुत्र व्यापारार्थ घरसे बाहर जाते हैं । देवचंदजी अपने कहनेके अनुसार प्रसन्नकुमरीको लाए। सेठ हीराचंदनी उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए। यह भी बहुत ही प्रसन्नचित्त, ठंडेमिज़ाज़ और लज्जावती थी । इसके मुखको देखकर हीराचंदनी राजी हो गए। और संवत् १९३३ में लगकी मिती निश्चित हो गई। ज्योंही देवचंदनी प्रसन्नकुमरीको लिये हुए घरसे बाहर जा रहे थे कि उधरसे नवलचंद किसी कामके लिये घर आए थे सो इस कन्याको सिरसे पैर तक देखकर भौंचकसे रह गए और वह कन्या भी इनके प्रफुल्लित और दृढ़ शरीर व मुखको देखकर आनन्दित हो गई। दोनों अपने २ रास्ते चलदिये पर अपने २ मनमें एक दूसरेके रूपकी झलकको न भुला सके । प्रेमका अंकूरा उसी दिन उग उठा । यह उसी प्रेम अंकूरेका प्रभाव है जिससे आज भी यह प्रसन्नबाई अपने पतिकी प्रेमपात्रारूप होती हुई व कई पुत्रपुत्रियों की माता होकर सेठ नवलचंदके अद्धोंगिणीपनेके कर्तव्यको बजारही है। इस शुभ लग्नमें सेठ हीराचंद एक बडी बारातको लेकर व १००.) खर्चका निश्चयकर दक्षिण दिशामें नवलचंदके विवाहार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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