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महती जातिसेवा तृतीय भाग । [६७७ सुखानंदनीने ५००) से ऊपर रुपया दिया। मंदिर तैय्यार होनेपर उसकी प्रतिष्ठा श्रीयुत गनपति उपाध्यायने वैशाख वदी १४ ता० २७ अप्रैल ११से वैशाख सुदी ३ ता० १ मई तक की। पहला रथोत्सव पहले दिन दूसरा अंतिम दिनको हुआ । चैत्र वदी १४ की रात्रिकी सभा सेठ माणिकचन्दजीने यह प्रस्ताव मंजूर कराया कि जो कासार, पंचम, सेतवाल आदि बम्बई में व्यापार व नौकरीके लिये आते हैं उनको भोजनका कष्ट रेहता है इससे एक जैन रसोईघर खोला जाय । वैशाख सुदी १ की समामें श्रीयुत् गनपति उपाध्यायने श्री जयधवल महाधवल ग्रन्थोंके लिखने में जो कष्ट पड़े थे उनका वर्णन किया तथा कहा कि अजमेरवाले सेठ नेमीचन्दजीने जयधवलादि ग्रन्थोंकी एक प्रति लेनेको भट्टारकनीको १००००) देने कहे पर ग्रन्थ न दिये गये । सेठ माणिकचंद और हीराचंद नेमचंदका ही प्रयत्न था जिससे उनकी कनड़ी और हिन्दी भाझामें लिपि मेरे द्वारा हो सकी। सं० १९५३से मैंने नकल शुरू की जब तक पहले कनड़ी फिर बालबोध लिपि पूरी करके मैं यहां आया हूँ । एक राद्धान्त ग्रन्थ ३००००) श्लोकोंका और नकल होनेके योग्य है। ___अक्षयतृतीयाके सबेरे मंदिरजीकी प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण हुआ उस समय अच्छी उपज हुई । प्रतिष्ठाके पीछे ही सब स्त्री पुरुष पास ही जुबली बागके
बंगलेमें गए । वहां सेठ हीराचंद बम्बईमें श्राविका- नेमचंदजीके द्वारा आश्रमका मकान श्रमका स्थापन । विधि सहित खोला गया । रिपोर्ट सुनी गई
व आश्रमके लाभार्थ व्याख्यान हुए। अहमदा
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