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अध्याय ग्यारहवां । जायगा तब ही आत्मध्यान होगा । आत्मध्यान है मो ही आत्मोन्नतिका सोपान है। कहा है
तव सुद् वद वञ्जेदा झाण रह धुरन्धरो हवे जह्मा । तम्हा तत्तिय णिरदो तल्लद्धीए सदा होह ॥ (द्रव्यसंग्रह)
भावार्थ-जो तप करे, शास्त्र जाने, व्रत धारे सो ही ध्यान रूपी रथकी धुरीको धर सकता है। अतएव ध्यानकी सिद्धिके लिये इन तीनोंमें अर्थात् तप, शास्त्र औ वतोंमें सदा हीन रहो।
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