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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३९१ परोपकार कार्यमें खर्च करना चाहिये । उससे खेल तमाशे कराना अधर्म है । उस पैसेको अमानतमें आप रखनेवाला हैं ऐसा समझें और खर्च करता रहे । बहुतसे लोग ऐसे रुपयेको अपनी वहियों में जमा करते चले जाते हैं पर उसका उपयोग नहीं करते । जब वह द्रव्य ज्यादा हो जाता है तब परिणाम गिर जाते हैं और वे उनको छिपाकर रहने देते हैं खर्चका नाम भी नहीं लेते । ” इस प्रस्तावका समर्थन रा० रा० अणाप्पा भरभाषा चिवटे और विष्णुपंत शास्त्रीने किया । प्रस्ताव पास हुआ । इसका लोगोंपर अच्छा प्रभाव पड़ा । आगामी वर्षके लिये शेठ माणिकचंद पानाचंद बम्बई कोषाध्यक्ष नियत हुए। संवत् १९६१ के जाड़ोंमें शोलापुरके सेठ रावजी नानचंद श्री सम्मेदशिखरजीकी यात्राको रवाना श्रीमती मगनवाईजी- हुए । सेठजीने उन्हींके साथ श्रीमती मगकी तीर्थयात्रा। नवाईनीको अंकलेश्वरकी विदुषी बाई व मग नबाईकी सहधर्मिणी ललिताबाई व रसोइया आदि १० मनुष्योंके साथ यात्रार्थ भेज दिया । सेठजीने मगनबाईजीको संस्कृत व धार्मिक विद्या पढ़ाकर व अनेक गुजराती व हिन्दी उपयोगी पुस्तकें तथा नित्य समाचारपत्र देखनेकी आज्ञा देकर इस योग्य कर दिया कि मगनबाईजी विना संकोचके यात्राका कुल प्रबन्ध कर सकती, टिकट मंगा सक्ती, असवाव तुलवा सक्ती, व आवश्यक्तानुसार बात कर सक्तीं थीं । गुजरात देशमें इस तरहका परदा नहीं है जैसा कि उत्तर भारतमें है कि स्त्री एक गुड़ियाकी तरह होती है। वह स्वयं यात्रा नहीं कर सक्ती। उसके हाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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