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________________ ६६४ ] अध्याय बारहवां । व सरस्वती कन्याशाला देखी जो समितिके आधीन चलती थी। इसमें अनुभवके साथ ज्ञान दिया जाता था। ता० ३-११-१०को सांगानेर में जाकर दर्शन किये व उपदेश दिया। ता० ४-११को आमेरमें जाकर प्राचीन मंदिरोंके दर्शन किये, पूनन की। ता० ६को सार्वजनिक खास सभा करके शीलवतकी महिमा कही। अनुमान २००ने नियम लिया । ता० ७ को रत्नत्रय धर्म पर व्याख्यान दिया। ता० १२ को दारोगाजीके मंदिरमें सभा हुई। आश्रमके लिये २३०)का फंड हुआ। समितिके आधीन तीन कन्याशाला व बोर्डिगके छात्रोंको मिठाई बांटी व इनामके लिये २५) दिये। इन बाइयोंके उपदेशसे जैपुरकी स्त्रीसमान स्त्रिशिक्षामें जो कुछ बुराई समझती थी उसे दूर कर कन्याओंके पढ़ाने में रुचि करनेवाली हुई व पढ़नेकी निन्दा त्यागती हुई। वास्तव में जैसे सेठजी बालकोंके उद्धारमें कमर कसे हुए थे ऐसे ही उनके यशको विस्तृत करनेवाली उनकी सुपुत्री मगनबाईनी स्त्री समाजके उद्धारमें दृढ़ प्रयत्नशील थीं। इष वर्ष ऐलक पन्नालालजीने अपना चातुर्मास शोलापुर में किया था। वहांसे त्यागीनी मगसर वदी बारामतीमें २ को बारामती पहुंचे । सेठ माणिकचन्दनी सेठजी। बम्बईसे और श्रीमती मगनबाईजी सीधी जैपुरसे यहां आगई थीं। मगसर वदी ४ को त्यागीजीका केशलोंच हुआ । इस अवसरपर सेठ हीराचन्द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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