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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४२९ औदार्य व चातुर्य यांचे मिश्रण 'सोने व सुगंध' यांच्या मिश्रणाप्रमाणे झाले आहे. याबद्दल आपणा प्रमाणेच आपले उदार बंधु श्री० शेठ पानाचंद, शेठ नवलचंद वगैरेहि आह्मां सर्वांस पूज्य झाले आहेत. आपली स्तुती कोणतेहि शब्द योजिले तरी जास्त होणार नाही. करितां थोडक्यांत आह्मी जिनेश्वरांच्या चरणाजवळ एवढीच प्रार्थना करितों की आपणांस, आपल्या बंधुवर्गाम व कुटुंबीयांस अशाच प्रकारे समाजसेवा करण्यास उदंड आयुप्य, आरोग्य आणि वैभव प्राप्त होवो. आपला-- श्री स्तवनिधि | अनंतराज शेट्टी मोतीखनी। पौप्य १५ शके १८२७ अध्यक्ष दक्षिण महाराष्ट्र जैन समा। इस मानपत्रको स्वीकार करते हुए सेठ माणिकचंदजीने कहा कि "मैंने व मेरे कुटुम्बने जो कुछ भी धर्म कार्य किया है वह कुछ आश्चर्यजनक नहीं, केवल अपनी शक्ति अनुसार अपना किंचित कर्तव्य पालन किया है । जैन जातिके सर्व धनाढ्यों का यही कर्तव्य है कि इस जैन जातिमें विद्याकी कमी है उसको मिटाने के लिये अपने तन मन धनसे चेष्टा करें। वास्तवमें यह सेठजीके वाक्य बड़े ही अमूल्य हैं। हरएक धनवानको हृदयमें धरकर सेठजीके समान उदार होना चाहिये। रात्रिको स्त्रियोंकी १ बड़ी सभा हुई । २५०० की संख्या थी। श्रीमती मगनबाईने अध्यक्षस्थान ग्रहण किया था। इसमें ८ बाइयोंने थोड़ा २ भाषण दिया। डाक्टरनी कृष्णाबाईने का पहिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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