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________________ ६६२ ] अध्याय बारहवां । “मैंने कुछ नहीं किया है । मेरे समान ओरोंकी भी तारीफ होय तो मैं बहुत खुशी होऊं । जैपुर में ५००० घरोमेंसे १८०० रह गए इसका कारण कुरीतियों का प्रचार मालूम होता है । इस कलंक से जैपुरको दूर करो । " ब्र० शीतलप्रसादजीने मरण पीछे जीमनके खर्चको घटानेको कहा । सेठजीने समितिको १०१) प्रदान किया अन्तमें | सभाका फोटू लिया गया जो अन्यत्र मुद्रित है । रात्रिको ठोलियोंके मंदिर में बड़ी उपदेशक सभा हुई जिसमें ब्र० शीतलप्रसाद, अर्जुनलाल सेठी व मूलचंदजी के भाषणों के पीछे सेठनीने विद्यापर बहुत बहुत उत्तेजना दी । ता. २२ को मुख्य भाइयोंकी समासे २० प्रतिनिधि दिल्ली के लिये चुने गए। ता. २३ को सांगानेरके अद्भु 1 जिन मंदिरोंके दर्शन किये। दो पहरको ब्र० शीतलप्रसादजीके साथ २५ वर्ष से स्थापित जैन महा पाठशालाका निरीक्षण किया । पाठशाला में एक सभा हुई । सेठजीको मानपत्र दिया गया । सेठजीने कहा कि जैपुर जो एक वर्षके लिये भी जोमनों को बंद करके उस रुपयेको महा पाठशाला में देदें तो एक मोटा फंड हो जावे । आपने १०१) पाठशाला में दिये । फिर समितिके बोर्डिंग व दफ्तरको देखकर इसी रात्रिको चल ता. २४को दिल्ली आए । ता. २६ अक्टूबरको लक्ष्मीनारायणकी धर्मशाला में सभा हुई। ३०० भाई हजारीबाग, कलकत्ता, इन्दौर, देहली में शिखरजी लखनउ आदि स्थानोंसे आए थे । सब विषयक सभा | १००० दि. जैनी जमा थे। सेठ माणेक 1 चंदजी के प्रस्ताव व रा० ब० घमंडीलालजी के समर्थनसे लाला ईश्वरीप्रसादजी रईस म्यूनिसिपल कमि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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