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________________ १५४ ] - अध्याय पाँचवाँ । सेवन किया जाय । यह वर्म इस लोक परलोक दोनोंमें उपकारी है । धर्मके सेवनसे इस लोकमें भी मनमें शांति होती है और आगामी भी धर्मका उत्तम फल होता है । यह बड़े आनन्दकी बात है कि हमारे चारों ही पुत्रोंका ध्यान धर्मके सेवनमें है। इस धर्मकी संगतिसे ही वे सदाचारी हैं और कीर्तिमान हो रहे हैं। हीराचंदनी ऐसा विचार करते हुए अब चित्तमें अति शांति रखने लगे। यह बात भी बड़े आनन्दकी थी कि सेठ हीराचंदजीके घर की स्त्रियोंमें कोई तकरार नहीं थी। चारों चारों स्त्रियोंमें ही स्त्रियां बड़े हेलमेलके साथ रहती थीं। एकता। रूपमतीबाईकी शांत प्रकृति व काम करनेकी चतुराई व सहनशीलता और धार्मिक झुकावका ऐसा प्रभाव था कि जिसके सामने अन्य तीनों स्त्रियां रूपमतीकी आज्ञामें चलती थीं। वास्तवमें जिस घरकी स्त्रियोंमें सुमति होती है वहां अवश्य लक्ष्मी और आनन्दका निवास होता है। तथा वह घर ही वास्तवमें वर है जहां सुमति और एकता ५वीका निवास है। उस घरमें पुरुषोंको एक आनन्द बाग नज़र आता है। इसके विरुद्ध जिस घरकी स्त्रियों में अनैक्य व कुमति होती है वहां भावोंके अशुभ रहनेसे प्रायः दारिद्य, दुःख और अपकीर्तिका निवास होता है और वह घर पुरुषोंके लिये एक नर्कके समान भासता है। बाहरके कामकाजसे त्रासित मुख होकर घरमें घुसते हुए उनको और अधिक त्रास भोगना पड़ता है। अपनी पत्नीसे मिष्ट व आनन्दित बचनोंके सुननेके स्थानमें उनको कटुक और दुःखभरी घर भरकी शिकायतें इस तरह सुननेको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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