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________________ २९८ ] अध्याय आठवाँ | सेट पानाचन्दको और पुत्रीका लाभ | सेठ पानाचन्दकी पत्नी रुक्मणीबाई की पुत्री लीलावती अब २ ॥ वर्षके करीब हो गई थी तब फिर एक पुत्री - का जन्म हुआ । यद्यपि सेठ पानाचन्दकी यह भावना थी कि पुत्रका दर्शन हो तो शुभ है क्योंकि " सेठ माणिकचन्द पानाचन्दु” जत्र फर्मका नाम था तब जो व्यापारी व मित्रवर्ग इनसे मिलते क इनसे व दूसरोंसे इनके पुत्रोंके सम्बन्धमें प्रश्न करते उसे उत्तर देते वक्त एक प्रकारका संकोच भाव चित्तमें आजाता था, परंतु इस सम्बन्ध में मनुष्यका पौरुष सफल होना उसके बिलकुल आधीन नहीं है । इस पुत्रीका नाम सेठजीने रत्नमती रक्खा और जन्म के समय यथायोग्य पूजा पाठ व उत्सव कराया । रुक्मणीबाई इस पुत्रीको भी बहुत भावसे व लाड़ प्यारसे पालने लगी । जैसा पहले कहा गया है संवत् १९५२ में मगनबाईजी के एक पुत्रीका जन्म हुआ था। तबसे यह अ मगनबाईजीको और धिकतर सूरत रहती थी और गृहस्थी में खूब पुत्रीका लाभ रचपच रही थी इष्ट वियोगका निमित्त होनेवाला था इससे वह पुत्री जिसे मगनबाईजी गोद में रखकर और उसका प्रसन्न मुख देख देखकर मनमें हर्षित होती थी जैसे कोई पक्षी किसी फूलपर आसक्त हो उसको बारबार स्पर्श करे तैसे यह उसके मोहमें लवलीन थी। पर वह जीव बहुत अल्प आयुकर्मको बांधकर आया था । करीब १ वर्षके ही जी कर उस पुत्रीने मगनमतीकी गोदको खाली कर दिया । जैसे किसीके पास १ हजारकी थैली हो और उसे कोई लूटले तब उ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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