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संयोग और वियोग। [२९९ सको जो दुःख होता है उससे असंख्य गुणा दुःख इस समय मगनबाईजीको हुआ। इसको खानापीना न रुचने लगा। नीचा मुख किये आंस वहाया करे । पति खेमचंदको भी शोक हआ था पर उसके संप्तारिक मित्र अनेक सो उनके संग नगरमें रमते हुए थोड़े दिनों में शोक भूल गया । पिता माणिकचंदनीका अपनी पुत्री मग नबाईपर निन पुत्रसे भी अधिक प्रेम रहता था। पुत्रीके इष्ट वियोगमे उन्हें भी कष्ट हुआ पर चित्त थाँभकर एक शिक्षापूर्ण पत्र अपनी पुत्रीको ऐसा लिखा कि जिसके पढ़ते ही इसका चित्त शांत हुआ
और पिछली धार्मिक बातें सुनी सुनाई याद हो आई । सेठ माणिः कचंदजी अपनी पुत्रीको महीनेमें दो चार पत्र भेनते ही रहते थे-- सदा शिक्षा देते रहते थे व किसी२ बातमें सम्मति भी पूछते रहते थे । मगनबाईनीको दो वर्ष बाद फिर गर्भ रहा। खेमचंदको आशा होने लगी कि अब पुत्रका लाभ होगा, पर अपना विचारा कुछ होता नहीं । संवत् १९५४ में दूसरी पुत्रीका जन्म हुआ। यह भी सुन्दरशरीर सुडौलअंग व मनहारिणी थी। इसे देखकर माताको बहुत सुख हुआ।
इसका नाम केशरमती रक्खा गया। मगनबाईजी इस पुत्रीको पाकर बहुत ध्यान व यत्नसे इसकी रक्षा करने लगीं। प्रायः छोटे २ बच्चे माताकी असावधानीसे मर जाते हैं। जो माताएं अशुद्ध व अनिष्टकारी भोजन करतीं, रोगी रहतीं, आलस्य करतीं, समय पर दुग्ध नहीं पिलाती, गर्मी सर्दी हवाका यथोचित यत्नः नहीं करतीं उनकी सन्तानका जीना बहुत कठिन हो जाता है। यह
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