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________________ १९८ ] अध्याय सातवाँ । मंदिरोंमें दरवाजे लगानेको भी रुपये पट्टाचार्यको दिये हैं। इस संबंधमें जब सेठ हीराचंद यात्रासे लौट आए तब पट्टाचार्यजीने सेठजीको हिंदी भाषामें पत्र भेजा उसकी नकल " जैनबोधक " में है उसका कुछ सारांश यहां दिया जाता है। ___ "......आपने श्री गोमट्टस्वामीके पहाड़ ऊपर और चिकपेटा ऊपर दरवाजे दुरुस्त करने वास्ते रुपये दे गए थे जिसमेंसे चिकपेटा ऊपर शांतिनाथ महाराजके मंदिरके दरवाजे तयार हो चुके हैं बाकीके तयार करनेके लिये लोहाके सिलापट्टी सब लाए हैं......गोमट्टस्वामीके पहाड़ ऊपर बड़े दरवाजेको खिड़की तयार करके बिठाई है........ जिननाथपुरके मंदिरके दुरुस्तीका काम ब्रह्मसूरि शास्त्री मूलबिद्रीसे यहाँ आवेंगे तब उनके विचारोंसे शुरू करेंगे......काम पूरा करके आपको लिखेंगे चंद्रप्रभ काव्य व्याख्यान सहित छापनेको दिई है.......तयार होनेसे आपके वास्ते एक प्रति भेज देवेंगे........आशीर्वाद सही भट्टारकजीकी द्राविड लिपिमें । इस पत्रकी कुछ नकल यहाँ इसलिये प्रगट की गई है कि हमारे पाठकोंको मालूम हो कि कनड़ी हिन्दीको भारतकी देशमें भी हिन्दी लिखने व पढ़नेका रिवाज राष्ट्रीय भाषा है जिससे भारतकी यदि कोई भाषा व होनेका दावा। लिपि राष्ट्रीय होसक्ती है तो यह हिन्दी भाषा ही है । दूसरे यह कि पट्टाचार्यजी ग्रंथोंके मुद्रणमें विरोधी न होकर सहकारी थे। गोमट्टस्वामीका बड़ा पहाड़ एक ही पत्थरका है ऊपर चढ़नेपर १ बड़ा दरवाजा आता है उसके भीतर जाते ही एक दम खुली, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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