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६८६ ] अध्याय बारहवां । देवकुमारके छोटे भाई धर्म कुमारकी विधवा स्त्री वैष्णव कुलमें जन्म लेने पर भी जैन धर्मके मर्मसे भले प्रकार विज्ञ हैं ) श्रीमती गंगादेवीको आश्रमके लिये दृढ़ किया व चमेलीबाई देहरादूनसे मिलकर मासिक चंदा करा दिया । मुरादाबादकी स्त्रियोंने भी सहायता करके कुल चंदा ५०) मासिकका हो गया । तब गंगादेवीने आश्रमका महू आषाढ वदी ११ वीर सं० २४३७ को लोहागढ़वाले मंदिरकी धर्मशाला में करके स्वयं पढ़ाना व रहना स्वीकार किया । ८ पुरुषों की निरीक्षक व ९ स्त्रियोंकी कार्यकारिणी कमेटी बनी। यह आश्रम अब तक कायम है । इसमें परदेशी सात विश्वाएं हैं । ४ यहांसे निकलकर फीरोजपुर, अम्बाला, रोहतक आदि स्थानों में काम कर रही हैं। श्रीमती गंगादेवी मुकुन्दरामकी पुत्री हैं जो जैनजातिमें कालेन कायम करनेके लिये सबसे पहले पं० चुन्नीलालके साथ दौरा करने गए थे व अच्छे विद्वान् थे । इनके पुत्र लाला संतलाल मुरादाबादके रईस हैं। सेठ माणिकचंरजीने षोडशकारण भावना व उसके आसपासके
दिन सुखशांतिसे बिताए तो भी शिखरजी रतलाम बोर्डिङ्गका पर्वतकी चिंता मनमें सदा ही बनी रहती थी।
रतलाम नरेश भादों बाद आपने रतलाम बोर्डिङ्ग खोलनेके द्वारा स्थापन। लिये विचार किया । वागड़ प्रान्तमें शिक्षाका
बहुत ही अभाव है इस बातको आपने पं० कस्तूरचंद उपदेशक द्वारा सं० १९६३ में अच्छी तरह जान लिया था। उनके दौरेकी रिपोर्टसे मालूम हुआ था कि ४२ ग्रामों में केवल एक ग्राममें ही जैन पाठशाला है तथा ५७०० जैनियों में
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