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महती जातिसेवा द्वितीय भाग ।
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कुंड हैं । नीचे क्षेमेंद्रकीर्ति भट्टारककी समाधि है। गांव म्हसरूल में
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एक सुन्दर शिखरच मंदिरजी है जिसे उक्त भट्टारककी प्रेरणा से शोलापुर के प्रसिद्ध सेठ रावजी के पिता नानचंद फतह चंदजीने सं० १९४२ में बनवाया था व सं० १९४३ में प्रतिष्ठा कराई थी । मंदिरजी के चारों तरफ कोट है । इसके भीतर दो धर्मशालाएं हैं, जिसमें ३०० मनुष्य ठहर सके हैं । उत्तम धर्मशालाओंके बनने की जरूरत है | यहांका हवा पानी बहुत ही अच्छा है । वम्बईके जैनी बीमार होनेपर यहीं आते हैं और अच्छे भले चंगे होकर लौट जाते हैं । इस अधिवेशनके सभापति श्रीमान् राजा ज्ञानचंदजी फोटोग्राफर हैदराबाद व बम्बई नित हुए थे । ता० २६ के ७|| बजे सवेरे दानवीर सेठ माणिकचंदजी, पं० धन्नालालजी, बाबू शीतलप्रसादजी आदि अनेक सज्जनोंके साथ राजासाहब नासिक स्टेशनपर पधारे । दिगम्बर जैन प्रान्तिकसभा के पट्टे लगाए हुए बालन्टियरोंने गाजे बाजे के साथ स्वागत किया । सेठ दीपचंद्र वीरचंदके बंगले में आराम करके सवारी शहरमें घूमते निकाली गई, जगह २ ध्वजा पताकाएं टंगी थीं। इस जल्से में पं० गोपालदासजी, सेठ सुखानन्दजी, सेठ रावजी नानचंद शोलापुर आदि बहुतसे महाशय शरीक थे । देशभक्त पाटनकर और खरे प्रतिदिन सभा में उपस्थित होते थे । ता० २७ को प्रथम बैठक हुई। सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदजीने स्वागतार्थ भाषण पढ़ा, फिर सेठ माणिकचंदजीके पेश करने सेठ रावजी नानचंद और सेठ नेमीलाल नागपुरके समर्थन से राजा ज्ञानचंदजी सभापति हुए । आपने अपना भाषण दूसरी बैठक ता० २८ की रात्रिको, तीसरी ता० यहां उल्लेख योग्य प्रस्ताव जो सभामें पास हुए वह ये थे:
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पढ़ा, इसी तरह २९ को हुई ।
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