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अध्याय दशवां । करके प्रबन्ध करें पर कुछ नहीं हुआ। उधर मेनेजर राघवनी और आरावालों में तकरार हो गई तब आरावालोंने अपना कब्जा किया, पर ४ ० ०००) पुलियाके कोर्टमें था उसको लेनेके लिये आरावाले.
और राघवजीके मुकद्दमा चला जिसमें १५ या २० हजार खर्च पड़े । अंतमें राघवजीको हुक्म मिला कि आरावालोंके ऊपर असल दावा करो, परंतु द्रव्य न होनेसे राघवनीने ग्वालियरके भट्टारकको मुकद्दमा लड़नेके लिये खड़ा किया। उसने पुरलिया कोर्ट में दरखास्त दी कि रुपै हमें मिलना चाहिये। यह गड़बड़ देखकर सभाकी ओरसे सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद व रामचंद नाथा आकलन आदि मधुवन गए तो मालूम किया कि आरावालोंने भट्टारकजीको २००००) देनेका लालच देकर अपने कब्जे में कर लिया है तब बम्बईवाले मधुवन गए । कोठीके हिसाबकी बहियां आदि मंगी सो मिली नहीं। कहा गया कि आरा गई हैं। ३ मनके ३२५ चांदीके उपकरण भी आरा गए हैं, उस समय देखा गया तो मंदिरोंमें घीके स्थानमें तेलके दीपक जलते थे। गरीब भिक्षुकोंके नामका पैसा कोठोके नौकर खा जाते थे। ऐसी दुर्व्यवस्था देख वे तुर्त ग्वालियरके भट्टारक और आरेवालोंसे मिले । ११ मनुष्योंकी कमेटी बनाई। नियमावली भी बनी तथा उसकी रजिष्ट्ररी करानेका निश्चय किया गया, परंतु आरावालोंने बहाने कर दिये । इतनेमें सुना कि भट्टारकजी व आरेवाले छपरेमें कुछ सलाह कर रहे हैं। इस गड़बड़ीसे विश्वास उठ जानेपर बम्बईवालोंने पुलिया कोर्टमें ४००००)के रक्षणार्थ अर्जी दे दी कि यह दिगम्बर जैन सम्प्रदायद्वारा नियमित कमेटीको मिलना चाहिये, इतनेमें आरावालोंने भट्टारकजीसे मिलकर
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