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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४५९ एक इकरारनामा रजिष्टरी कराया जिसमें भट्टारकनीको १२०००) नकद और ६००) वार्षिक कोठीसे देना निश्चय किया तथा उसमें यह भी लिखा था कि भट्टारकजी, उनके चेले व अन्य किसी दि० जैनीको हमसे पूछनेका अधिकार नहीं है तथा उसी समय ३१००) नकद कोठीके भंडारसे दे भी दिये तथा पुरलिया कोर्टमें दरखास्त दे दी कि ९०००)भट्टारकजीको, शेष आरावाले प्रबन्धकर्ता शिखरचंदको मिलना चाहिये । ऐसी २ कार्रवाइयोंसे तीर्थक्षेत्र कमेटीको निश्चय हो गया कि विना कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप किये कोठीका प्रबन्ध सुधर नहीं सक्ता और न भंडार ही रक्षित रह सकता है। तब सेठ माणिकचंदजीने मुकदमा नं० १ सन् १९०३ दायर कर दिया। उस पर कोर्टने तुर्त एक रिसीवर साकरचंद देवचंद जैनी बोरसदनिवासीको नियत करके प्रबन्ध उसके हाथसे कराया । इसपर आरावाले घबड़ाए और नागपुरमें आकर सेठ गुलाबशाहजीके द्वारा बम्बईवालोंसे सुलहकर ली, तब केवल छपरावाले बाबू गुलाबचंदजी तथा ग्वालियरके भट्टारक ही मुद्दालय रहे । बम्बई वालोंने स्वयं छपरा जाकर समझानेका प्रयत्न किया, पर कुछ सफलता नहीं हुई। अंत में रांचीके जुडिशल कमिशन मि० डबलू. एच. विन्सेन्टने ता० २९ जून १९०५ को फैसला दिया कि पूराने सब प्रबन्धकर्ता हटा कर नए नियत हों। ता: २२ दिसम्बरको कुछ नियम नियत करके ७ ट्रष्टी तय कर दिये, जिसकी अंग्रेजी नकलका उल्था नीचे प्रकार है
उपरैली कोठीके प्रबन्धके नियम । १-मंदिरकी कुल जायदाद नीचे लिखे सात ट्रष्टियोंकी कमेटीके
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