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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४७३ जैनगजट, जैन मित्र तथा जिनविजय में सूचना प्रगट कर दी कि दफ्तर खुला है इस लिये तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी सर्व पत्र व्यवहार व रुपया आदि नीचे लिखे पते पर भजना चाहिये - माणिकचंद हीरा - जे. पी., महामंत्री, भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, हीराबाग धर्मशाला, गिरगांव - बम्बई । उज्जैनकी बिम्बप्रतिष्ठा में सेठ माणिकचंदजी से बागड प्रान्तके बहुत से जैनी भाई मिले थे और निवेदन वागड़ प्रान्तका दौरा किया था कि हमारे प्रान्त में उपदेश करावें, व सेठजीके बचनकी घोर अंधकार है । तबसे सेठजीको ध्यान था सत्यता । कि किसीको भिजवाया जाय । इन दिनों में महा सभा में कोई योग्य उपदेशक न था तव मालवा प्रान्तिक सभाके उपदेशक विभाग के मंत्री लाला हज़ारीलाल नीमचसे सेठनीका पत्र व्यवहार चल रहाथा कि आप अपने यहांके उपदेशकको अवश्य भेजे । मंत्री महाशयने स्वीकार करके मिती आसोज सुदी ११ सं. १९६३ से पं० कस्तूरचंदजी उपदेशकको दाहोद, लेमडी, नालह, रामपुरसे उदयपुर स्टे - शन तक ५० ग्रामों में घूमनेका प्रोग्राम देकर भेज दिया जिसकी सुचना जैन गज़ट अंक ५१ ता० १ नवम्बर ०६ में मुद्रित करा दीं । वास्तव में जो बड़े पुरुष होते हैं उनको अपने बचनों का बड़ा भारी ध्यान रहता है । उपदेशकजी दौरे पर रवाना होगए हैं ऐसा जानकर तुर्त सेठजीने १००) उपदेशक भंडारकी सहायतार्थ नीमच भेज दिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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