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________________ उच्च कुल में जन्म | [ ६५ मालूम होता है कि अग्रोहेके अग्रवालोंको जैनी करते हुए जो संघ स्थापित किया वह उनके समय में काष्ठासंघ कहलाया । इधर वागड़ मेवाड़देश में कुमारसेनने मूलसंघसे कुछ अनमिलती प्रवृत्ति चलाई इससे यह भी काष्ठासंघ कहलाया । श्वेताम्बरी लोगों में 'हुवल वार्णकस्य आसीसो' नामकी एक पुस्तक है उसमें हूमडों की उत्पत्तिमें यह लेख है कि - माड़वगढ़ देश मालवा में एक भट्टारक विजयसेनसरि थे उन्होंने अपने शिष्य धनेश्वरसूरि को अपनी वृद्धावस्था जान आचार्यपद दिया । एक दिन धनेश्वरसूरि सभाको व्याख्यान दे रहे थे, तब उनके गुरु आए । कथा - रस में लीन होनेके कारण गुरूको आया न जान किसीने विनय न की जिससे विजयसेनका चित्त खेदिन हुआ सो एक दिन धनेश्वरको बाहर रवाना कर दिया । धनेश्वरसूरी सिद्धपूर पाटन पहुंचे वहां चमत्कार दिखा कर भूपतिसिंह आदि १८००० क्षत्रियों को सेना में ले जाकर संवत ८२० में श्रावक बनाये और उस जातिकी नाम हुंबल रक्खा इस अहंकारसे कि मैंने अपने उपदेश से जैनी किया । यह नाम बिगडकर हूमड हो गया । यह यथन इस कारण ठीक नहीं जचता है कि विजयसेन नाम श्वेताम्बर आचार्यका न होकर दिगम्बर आचार्यका होना चाहिये क्योंकि सेनगण दिगम्बरियों में है । यह विजयसेन नहीं किन्तु विनयसेन हैं, जिनके शिष्य कुमारसेनने हुमड़ ज्ञाति स्थापित की । सं० ८२० व ७८३ करीब २ मिलते हुए हैं । धनेश्वरसूरि बिड़ालसेनके शिष्य नहीं हुए किन्तु यह वल्लभीपुरमें हुए, वहाँ शिलादित्य राजाकी प्रेरणासे सेश्रुंजय माहात्म्य रचा है तथा इनका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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