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________________ २६४ ] अध्याय आठवाँ । भारतवर्षीय दि० जैन महासभा नामकी सभा पंडित चुन्नीलाल मुरादाबाद व अन्य परोपकासेठ माणिकचंदजीका रियोंके उद्योगसे सन् १८९१ में व संवत् महासभा मथुरामें १९५७में मथुरा जंबूस्वामीजीके मेले पर प्रथम गमन। संगठित हुई थी इसके सभापति श्रीमन् सेट लछमनदासजी सी० एम० आई, मथुरा व उपसभापति रायबहादुर सेठ मूलचंदनी सोनी, अजमेर व लाला उग्रसेनजी सहरानपुरवाले आदि थे। संवत १९५० के वार्षिक अधिवेशनके लिये मुम्बई स्थानीय सभाने ३१ प्रतिनिधि चुने थं पर मेलेके समय जो सदा कार्तिक वदी २से ८ तक होता है निम्नलिखित चार महाशय पधारे । (१) सेठ माणिकचंदनी (२) सेठ गुरुमुखरायजी (३) सेट हीराचंद नेमचंदनी (४) और पंडित गोपालदासजी वरैया । इस वर्ष मेलेमें १०, १५ हजार आदमियोंकी भीड़ थी। मथुराके चौरासी स्थानपर शहरसे २ मील एक बड़ा भारी जिन मंदिर है। वहां अंतिम केवली श्री जंबूस्वामीजी महाराजके मोक्ष जानेके चरण चिन्ह स्थापित हैं तथा श्रीअजितनाथजीकी बहुत विशाल वीतरागता प्रदर्शक मूर्ति है। इस वर्ष आगरा, अलीगढ़, हाथरस आदि १३ नगरोंसे श्रीजीकी वेदियां जलेब सहित आई थीं। कार्तिक वदी ७के दिन सेठ लक्ष्मणदासजीके डेरेपर नियमावलीका विचार हुआ। रात्रिको मंदिरजीमें शास्त्र छपने न छपनेकी चर्चा चल पड़ी थी। सेठ हीराचंद नेमचंदने पुस्तक छपनेकी पुष्टि व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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