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________________ संयोग और बियोग। [२६३ इति महाराष्ट्रदेशे पुण्यपत्तनवर्तिनि दक्षिणविद्यालय आंगलविद्यादि संस्कृतकाव्यालंकारव्याकरणाद्यधीयानेन वेणुग्रामनिवासिना चौगुलेत्युपनाम्ना अण्णाप्पाभिधानेन विरचितं श्रीतापापहारस्तोत्रम् । सेठ माणिकचंदनीकी इंग्रेजी पढ़नेवालोंको छात्रवृत्ति दिये जा नेकी खबर दूर दूर फैल गई थी। लखनऊ बाबू अजितप्रसादजी निवासी बाबू अजितप्रसाद एम. ए. का विलायत जानेके एल. एल बी. वकील, सम्पादक, इंग्रेजी लिये निवेदन । जैन 'गजट से हमारे पाठक अच्छी तरह परि चित हैं । आपने सेठजीको पत्र दिया कि मैं सिविल सर्विस पास करनेके लिये विलायत जाना चाहता हूं। मैंने इसी वर्ष (सन् १८९३) वी० ए० पास किया है, उम्र १९ की है । हररोज़ स्वाध्याय करता हूं । दर्शन भी करने जाता रहता हूं। मुझे विलायत जानेको रुपया कर्ज चाहिये । उस समय इनके पिता कमसरियटमें क्लर्क थे। इतनी शक्ति नहीं थी जो द्रव्यका प्रबन्ध कर सकें । दि० जैन समाजमें विलायत भेजनेमें भिन्न २ सम्मति होनेके कारण सेठजीने स्वयं मदद नहीं दी किन्तु जैन बोधक अगस्त १८९३में इनका पत्र प्रगट कराकर अन्योंको प्रेरणा करवा दी कि सहायता करें, पर इसका कोई भी प्रबन्ध नहीं हुआ। वास्तवमें बहुतसे छात्र धनकी मदद के विना अपनी इच्छानुसार विद्या सम्पादन करनेसे वन्धित रह जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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