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दानवीरका स्वर्गवास ।
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आत्मस्नेही व्हेन मगनव्हेन,
ना तनदुरस्तीए देवलाली हतो. " जामे जमशेद " पत्रमां जे समाचार वांचवामां आव्या तेथी हृदयना ऊंडा भागमां जे शोक थाय छे तेनो पार नथी. तमारी स्थीतीने त्यारे केवो आघात थयो होवो जोईए. ओ तमारी साथे जैन कोमना पिता हता, तेमां पण त्रणे सम्प्रदायना अभेद भावे विद्यार्थी, दुःखी जैनोना, अवस्य हता, पण व्हेन, आपणा पुण्यनी अवधि होय छे, आ अवधिनी पर रहेता आत्मामां रही आत्मबळ संपादन करी पितृश्रीने पगले चालवामां तेओश्रीना आत्माने शांति अने आपणनुं कल्याण छे. शासन देवो तमारा कुटुंबने आ असह्य आघातमां रक्षण करो.
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तमागे शोकातुर, वीरवाळ पं० लालन
मान्यवरा श्रीमती मगनबाईजी ।
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यह सुन कर कि श्रीमान् दावीर जैनकुलभूषण सेठ मानकचन्दजी अकाल मृत्युके ग्रास हो गए अत्यंत शोक हुआ । न जाने इस जातिका कैसा दुर्भाग्य है कि प्रथम तो इसमें नररत्नों की उत्पत्ति ही नहीं, यदि एक दो की उत्पत्ति होती है तो उन्हें मृत्यु अपना ग्रास बना लेती है। सेठजीकी इस अकाल मृत्युसे जो दुःख आपको तथा आपके कुटुम्बी जनों को हुआ है उससे कई गुणा अधिक हम लोगों को हुआ है जिसका हम शब्दों द्वारा प्रकाश करने में असमर्थ हैं। बाईजी, आप स्वयं विदुषी हैं। आप संसारकी अवस्थाको भलीभांति जानतनी हैं, इसमें जो जन्म लेता है वह अवश्य एकदिन विनाशको प्राप्त होता है । इस पृथ्वीवर कितने बल्देव, कामदेव, नारायण, प्रति नारायण हुए परन्तु सबके सब कालके ग्रास हुए, अतएव यह संसार असार ह अशरण है, यह जान कर
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