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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । विद्याप्रदानादिबहुप्रकार-रूपमहैश्चोपकृता हि जैनाः । सर्वोपकारं परमद्य वीक्ष्य सम्राडपि त्वां स्मरति प्रहृष्टः ॥ ३ ॥ कीर्तिस्त्वदीया जगति प्रसिद्धा श्रुता न चेत्कर्जनसर्पराजैः । तथापि तां कर्णसुधाप्रदात्री कथं न श्रूयात्समनस्कमिन्टो ॥ ४ ॥ वदान्यशूरोजिनधर्मनेमिः विद्यार्थिवर्गकसहायभूतः । चिरायुषं धर्मपरायणं त्वं धर्मप्रसादेन लभस्व पुत्रम् ॥ ५॥ प्रमुदितो विनीतश्च लालारामछात्रः । फल्टनके दि० जैन भाइयोंने चैत्र सुदी ११ की खास सभा द्वारा एक छपाहुआ मानपत्र भेटमें जे. पी. पदवीके हर्षमें भेना; रुकडी जिला कोल्हापुरके समस्त . सभाएं। श्रावक और मंडलीने ता. २१ मार्च १९०६ __ को दस्तखती एक सन्मानपत्र छपा हुआ भेजा तथा ता. १५ जुलाईको हीराचंद गुमानजी बोर्डिंगके छात्रोंने .. भी इसी हर्ष में मानपत्र अर्पित किया था। इन तीनों मानपत्रकी नकलें इस भांति हैं नकल मानपत्र (फल्टन) दानवीर श्रीयत सेठ माणिकचन्द हीराचन्द जे० पी० यांचे सेवेशी:सावद्यमुक्तं विमलं चरित्रं विभाति रत्नत्रयरोचि रम्यम् ॥ लोके यदीयं स च दानवीरो माणिक्यचन्द्रो मणिवच्चकास्ति ॥१॥ केचिन्निवासरहिता: कतिचिच्च रोगैराक्रांतदेहलतिकाः कतिचिद्दरिद्राः विद्याजडाः कति च केचन धर्महीना यस्याश्रयाजगतिशांतिमवापुरग्र्याम् ॥२ क्षपाकरस्येव क्षयो न दृष्टो दोषाकरत्वं न च विश्रुतं ते ॥ मित्रोदये नैव रुषं दधासि तले धरित्र्यास्त्वमपूर्वचन्द्रः ॥३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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