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५३० ] अध्याय ग्यारहवाँ। एल० सी० ई० आदि आए थे। और सूरतसे मूलचन्द किसनदास कापड़िया भी आए थे । प्रोफेसर आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव एम० ए. एलएल० बी० के प्रमुखत्वमें जल्सा हुआ । मुजरात विभागसे ४०० गृहस्थ आए थे । प्रमुख साहब व चीनूभाई माधोमाई सी० आई० ई० ने विद्यार्थियोंको बहुत बोधदायक उपदेश दिया । बोर्डिगके सहायतार्थ ११००) के अनुमान द्रव्य आया । इस समय
छात्र ३५ थे। ... सेठजीने रात्रिको आमोदवाले हरजीवन रायचंदको 'दिगम्बर
. जैना पत्र न निकालनेके कारण बहुत कुछ "दिगबर जैन " कहा तब हरजीवनजीने बिलकुल इनकार कर मासिकके लिये दिया । सेठनी उदास हो गए और विचारने प्रयत्न । लगे कि किसको सम्पादक किया जाय ।
इतनेमें शीतलप्रप्तादजीने सूरतनिवासी मूलचंद किसनदास कापड़ियाकी तरफ इशारा करके कहा कि यह नवयुवक उत्साही, धर्मप्रेमी व कुछ शास्त्रका ज्ञाता मालुम होता है, उसे ही सम्पादक बनाना चाहिये ।। पहले तो सेठजीके ध्यानमें यह बात नहीं आई चुप हो रहे,
तब शीतलप्रसादजीने अपने अनुभवसे कहा मूलचन्द किसनदास कि यह उत्साही हैं। यदि उद्योग करेंगे तो कापडियाको संपा- अवश्य पत्रको चला लेंगे । तब सेठनीने दक होनेकी सेठ- मूलचन्दनीको सम्पादक होनेको कहा, जीकी सूचना। सुनते ही मूलचंदनी चौंक पड़े और बोले
कि मैंने आजतक कभी एक लेख भी नहीं . लिखा है। मुझे इसका अनुभव बिलकुल नहीं है। मैं व्यापार में
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