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________________ ४४८ ] अध्याय दशवां । पहर पालकीपर श्रीजी विराजमान हुए। फूलमालकी बोली १०२५) में सिंहई डालचंद दमोहने ली । सेठजीको संस्कृत विद्या की उन्नतिके लिये स्याद्वाद पाठशाला काशीका बहुत बड़ा ध्यान था। इसके लिये ३२५) की सहायता स्वीकृत हुई । सेठ साहबसे सर्व ही छोटे बड़े उनके ठहरनेके स्थानपर मिलने आते थे । सेठनी उनको विद्या पढ़ने और कुरीति मेटनेका उपदेश देते थे व बोर्डिंगकी जरूरत है कि नहीं ऐसी सम्मति लेते थे। जबलपुर वालोंकी सम्मति देखकर कि यदि बोर्डिंग होवें तो सर्वसे श्रेष्ठ बात है, आप ता० २३ की दोपहरको चलकर ता० २४ मार्चको जबलपुर आए। स्टेशन पर भाइयोंकी बहुत भीड़ थी। सिंहई डालचंद नारायणदासजी यहां उदार बुद्धि धर्मात्मा जबलपुरमें बोर्डिंगकी थे । उन्होंने सेठनीको अपनी धर्मशाला खटपट । लार्डगनमें ठहराया और बहुत ही प्रेम प्रद र्शित किया। सेठनीने २, ३ दिन शहरके मुख्य २ भाइयोंसे मिलने व उनको बोर्डिंगके लिये तय्यार होनेके लिये भारी चेष्टा की। सेठनीको आलम्य बिलकुल न था। शीतलप्रसादके साथ हरएक प्रतिष्ठित भाईके यहां जा जाकर उसे इस कामके लिये मज़बूत किया । आप शहरके प्रतिष्ठित अजैनोंसे भी मिले जिससे जैनियोंको जिन्हे कभी बोर्डिंग ऐसे काम करनेका ढंग नहीं मालूम है मदद मिले । यहां पर रायसाहब मुन्नालालजी पेन्शन याफ्ता बहुत प्रतिष्ठित व परोपकारी पुरुष थे उन्होंने सेठजीके विचारकी पूर्ण सराहना की और हर तरह मदद देनेको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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