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अध्याय पहिला |
हमारा (लेखक) उस उत्तम मानवसे बहुत वर्षोंतक सम्बन्ध रहा है- हमने उसके सद् विचारों और भावनाओंको रात्रिदिन अनुभव किया है अतएव यह हमारा फर्ज आन पड़ा है कि हम उनका एक दिग्दर्शनमात्र वर्णन जगतके मानवोंके हितार्थ करें जिससे अनेक मानव उस उत्तम मानवका दृष्टान्त ले अपने जीवनको उपयोगी बनावें । यद्यपि वे गृहस्थ थे, त्यागी नहीं थे, तो भी हृदयके त्यागी थे वैरागी थे और बड़े पुरुष थे और इसीलिये उनके जीवनका वर्णन हमारे द्वारा हो जाना हमें भी उनके उत्तम मानवीय गुणोंमें प्रेरित करनेवाला है । अतएव उस उत्तम मानवके उपदेशद्वारा इस समय परोपकारता में रात्रिदिन लवलीन सेठ मूलचंद्र किसनदास कापड़िया सम्पादक - "दिगम्बर जैन,” सुरतकी
गाके अनुसार दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचंद्र हीराचंद्र जे० पी० सभापति - "भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा" का कुछ चरित्र आगे लिखा जाता है ।
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