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________________ करक मा ४६८ ] अध्याय दशवाँ अजमेरके प्रसिद्ध सेठ नेमीचंदजी साहब बम्बई पधारे । आपकी बम्बईमें बहुत ऊंची और प्रतिष्ठित दूकान हीरावागमें सभा और 'जवारमल मूलचंद । के नामसे है । आपको स्याद्वाद पाठशाला शास्त्रोंका ज्ञान है तथा धार्मिक नित्य काशीके लिये नियमों के पालनेमें इतने सावधान हैं कि यदि १५०००)का शरीर अस्वस्थ न हो तो आप प्रतिदिन श्री संकल्प । जिनेन्द्रकी अष्ट द्रव्यसे पूजा करके व स्वाध्याय करके भोजन करते हैं। यदि परदेशमें भी जावें और ९, १० भी बन जावे तो भी वहां मंदिरजीमें पूनन स्वाध्याय करके भोजन करते हैं तथा आप हर एकको जो मिले उससे स्वाध्याय करनेके लिये पूछते हैं । व्याख्यान देने का भी आपको अभ्यास है । हीराबाग धर्मशालाके लेक्चर हॉलमें ता० १९ जुलाईकी रात्रिको नोटिस बांटकर परोपकारी मि० ए० बी. लढे एम० ए० के सभापतित्त्वमें सभा की गई, उसमें सेठ नेमीचंदनी सोनीने 'विद्योन्नतिपर एक अति प्रभावशाली व्याख्यान दिया तथा संस्कृत विद्याकी जैनियोंमें आवश्यक्ता बताई और जो स्याद्वाद पाठशाला ता० ११ जून १९०५ को काशीमें स्थापित हुई थी उसकी अति प्रशंसा की व काशी ही पंडितोंके पैदा करनेका स्थान है ऐसा कहा और सेठ माणिकचंदनीको इसके स्थापनके लिये धन्यवाद दिया तथा कहा कि उसको चिरस्थाई कर देना चाहिये जिसमें वह सदाको चलती रहे । आपके व्याख्यानके कुछ वाक्य उपयोगी जानकर नीचे दिये जाते हैं"यहां तक हम बे खबर हैं कि हम लोग अपने बालकोंको धर्मविद्या तकका ज्ञान नहींकराते हैं इसी कारण देखने में आता है कि लोग न भाव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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