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महती जातिसेवा तृतिय भाग। [६३३ लाभ तो मुझे होना ही नहीं है। मेरे तो बोर्डिंगके छात्र हैं सो ही मेरे पुत्र हैं। मगनबाई व ताराबाईको बीत २ हजारकी जायदादके मकान दे चुका हूं। ऐमा ही बड़ी कन्याको दिया है। यद्यपि वह मर गई है परन्तु उनकी पुत्री कमला है। अब मुझे कुछ और दान करना है । जुबलीबागमें ११००) मासिकके भाड़े की आमदनी है इसको मैं अपने जीतेनी रजिष्ट्री करके पक्काकर दूं। यह बात होकर आपने किस२ मद्देमें देना सो खूब सोच बिचारकरे वकीलसे ट्रष्टका मसौदा ठोक करा शीतल प्रसादजीके साथ रजिष्ट्रारके यहां जा रजिष्टरी करा दिया था । पुण्य योगले मिती पौष सुदी १ सं० १९६६ व वीर सं० २५३६ ता० १२ जनवरी १९१० के दिन सेठानीने एक पुत्ररत्नको जन्म दिया । सेठनीको कुछ आनन्द तो हुआ पर उसके जीवनकी आशा नहीं इससे कोई विशेष न किया । क्योंकि एक पुत्र थोड़े ही दिन पहले प्राणान्त हो चुका था पर सेठजी का पुण्य तीव्र था कि आपने अपने मरण समय तक इस पुत्रको सजीवित खेलता हुआ देखा । यह पुत्र जीवनचंद अब अपनी माताकी रक्षामें शिक्षा पारहा है। सेठजी मांसाहार रोकनेके लिये अच्छी २ विलायतकी छपी
पुस्तकोंको बांटा करते थे। कलकत्तानिवासी सेठजीके द्वारा महान् बाबू रज्जूलाल जैनी जब यात्रा करते हुए लाभ । बम्बई आए तब उनको उत्साही व उद्योगी
जानकर (Uric acid) यूरिक एसिड नामकी पुस्तक दी थी। उक्त रज्जूलालने वह पुस्तक बेचूलाल चैरीटेबल डिस्पेन्सरीके डाक्टर आशुतोष बनर्जी एल. एम. एस. को पढ़नेको
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