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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३९७ घोष कम्पनीके यहां अमीनाबादमें ५०) मासिकके एकोन्टेन्ट थे । लखनऊ में मिडिल क्लास तक शिक्षा पाकर कलकत्ते व्यापारार्थ गए । वहां कई वर्ष रहे । एक वर्ष सील्स फ्री कालेनमें पढ़कर ता० १५ अप्रैल १८९६ को इन्ट्रेन्स परीक्षाके प्रथम विभागमें उत्तीर्ण पत्र प्राप्त कर लिया था । द्वितीय भाषा शुरूसे हिन्दी और संस्कृत थी। लखनऊमें आकर टामसन सिविल एन्जीनियरिंग कालेज रुड़कीकी फोर्थ ग्रेड एकौन्टेन्टशिप नामकी परीक्षा ११ फर्वरी सन् १९०१में पास की। १॥ वर्ष पीछे फिर अवध रेलवे एकाज़मिनरके दफ्तर में इस गरजसे भरती हुए कि शीघ्र ८०) मासिक पानवाले एकौन्टेन्ट हो जावेगे और तब १५०) तक बढ़कर आगे तरक्की करेंगे। पहले इन्हें स्वाध्यायका शौक न था । जब लखनऊमें इंग्रेजी पढ़ते थे तब नित्य दर्शन व कभी २ प्रछाल पूजन व कभी शाथ सुनते थे । दर्शन करके जीमना यह नियम ८ वर्षकी उम्रमें लिया था इसीसे धर्मकी लग्न लगी रही। यदि यह नहीं होती तो इंग्रेजी स्कूलकी संगतिमें पढ़कर जैसे और बालक धार्मिक क्रिया छोड़ बैठते हैं वैसे यह भी छोड़ बैठते पर दर्शनके नियमने धर्म मार्गपर कायम रक्खा । स्वाध्यायका अभ्यास कलककत्तमें बाबू ऋषभदास प्रयाग निवासीको एक दिन पंडित सदासुखजी कृत रत्नकरंड श्रावकाचार पढ़ते हुए सुनकर प्रारंभ हुआ था। जब तक जैनगजट लखनउमें शीतलप्रसादके द्वारा छपता रहा बाबू देवकुमार आरा निवासी सम्पादक थे। शीतलप्रसादको लेख लिखने व समाचार देखनेका शौक था। बहुतसे लेख स्वयं लि. खकर समाचार छांटकर यह दिया करते तथा प्रूफको जांचकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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