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महती जातिसवा प्रथम भाग |
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ईडरके भंडार से करीब ४०० ग्रंथ सेठजीके यहां
आए हुए थे जो संस्कृत व प्राकृतके प्राचीन थे । बंबई सेठजीकी सरस्वती । आते ही इन्होंने एक विद्वान् इसलिये नियत
भक्ति ।
कर दिया कि जो ग्रंथोंका सूचीपत्र बनावे | उसमें इतने विषय लिखे जानेका निश्चय किया - नाम ग्रंथ, आचार्य, लेखक, भाषा, पत्र व श्लोक संख्या, प्रति लिखनेका समय आदि मंगलाचरण, अन्य प्रशस्ति और सहजलभ्य इतिहास | इसके तीन रजिस्टर सेठजीके चौपाटी के बंगले पर मौजूद हैं, विद्वान देखकर लाभ उठा सकते हैं ।
सेट माणिकचंदजीको, जबसे व्यापारसे निवृत्त हुए रात्रि दिन धर्म व जाति सेवाका ही ध्यान था । धर्मके सेठजी द्वारा स्याद्वाद निमित्त पगसे रुक २ कर चलनेपर भी पाठशाला काशीकी रेलकी व बैलगाड़ी तककी यात्रा करने में स्थापना । कभी कष्ट व प्रमाद नहीं होता था, सबेरेसे १२ बजे रात्रि तक यही विचार रहा करते थे । जेठ सुदी १० सं० १९६२ ता० १२ जून १९०५ को काशी में दिगम्बर जैन जातिकी ओरसे संस्कृत धार्मिक विद्याकी उन्नतिके अर्थ श्रीयुत पं० पन्नालाल बाकलीवाल, बाबा भागीरथजी और पं० गणेशप्रसादजीके उद्योगसे पाठशाला खुलनेका महूर्त्त था । उसका उद्घाटन सेठ माणिकचंदजी करें ऐसी प्रेरणा होनेपर सेठजी बम्बई से तुर्त ही काशी पधारे और मैदागिनी धर्मशाला में ठहरे । शहरवालोंने आपका बहुत सन्मान किया । पाठशालाका महूर्त मैदागिनी जैन मंदिर में सबेरे ८ बजे हुआ । उस समय बाहरके
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