SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२०५ " श्रीमद्विशुद्धबोधाय शांतायामलकीर्तये। स्याद्वाद सत्यवाक्याय, जिनेन्द्राय नमो नमः ॥ १ ॥ जयतु जयतु शश्वत् शासनं जैनमेतत् । सकलविपुलधर्म श्रीलतावद्धमूलं ॥ सुद्दढ़मिहधरित्र्यां यावदेषाधरित्री । वसतिवसतिरुच्चेरर्हतस्थानलक्ष्म्याः ॥ २ ॥" इसमें एक छोटीसी पाषाणकी चौवीसी मूर्ति फूटी पड़ी हैं। इस गांवमें संस्कृत शाला हैं । ६० छात्र पढ़ते हैं। कई न्याय भी सीखते हैं। यहाँसे २२ मील गिरा विजसली नामकी पहाड़ोंकी झाड़ीमें एक खेड़ा गांव है जहाँ इलायची व काली मिर्च बहुत होती है। ९६० तोलेका एक मन, इस तौलसे एक एकड भूमिमें २५ मन इलायची होती है। १ मनका दाम ५३) है। ____ यहाँसे १५ मील जंगलमें एक चौकी है। वहाँसे १६ मील निडगल गांव है। यहां श्री शांतिनाथजीका मंदिर है। यहाँसे वेर १५ मील है, यहां ८ जिन मंदिर हैं। सर्कारसे २६८) साल ईनाम मंदिरोंकी सेवार्थ मिलते है। यहां श्री गौमहस्वामीकी मूर्ति है । श्रवण बेलगोलाकी मूर्तिसे आधे आकार होगी जिसके दक्षिणभागमें लेख है उससे प्रगट होता हैं कि शाका १५५५में तिम्म राजाने प्रतिष्ठा कराई। प्रतिमाजीके पगका तला २॥ हाथ लम्बा है। यहाँ उपाध्याय जैन ब्राह्मण हैं जिनको इन्द्र कहते हैं। उनके ८ व जैनियोंके अनुमान ४० घर हैं। इनमें रोटी व्यवहार है पर बेटी व्यवहार नहीं हैं। यहाँसे मूलबिद्री १२ मील है। यहां १८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy