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________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७४१ उस समय सूरतकी फुलकुंवर कन्याशालाकी कन्याओंसे गायन गरबा आदि गवाया व कन्याओं को मिठाई सहित प्याले व अध्यापकोंको भी इनाम दिया । (५) जैन संस्थाओं में बांटे। केशरमतीको गुजराती, हिन्दीकी शिक्षा होकर इंग्रेजीकी शिक्षा हो रही थी, संस्कृतमें मार्गोपदेशिका चल रही थी। अपनी पुत्रीके पढ़ानेमें माता मगनबाईने कोई कसर नहीं रक्खी थी। तथा इसके वर चंदूलाल भी धर्मप्रेमी व कालेनकी पढ़ाई पढ़नेवाले हैं जिनकी द्वितीय भाषा संस्कृत है । अब ये दोनों दम्पति मुखले बम्बई में ही निवास करते हैं। श्रीमती मगनबाईजीका चित्त भी समाजसेवा करनेसे कभी उकताता नहीं था । आप पुत्रीके लग्नसे बड़वानीके मेलेमें छुट्टी पाकर बम्बई आ श्री बड़वानी सिद्धक्षेत्रमगनबाईजी। के मेलेमें उपदेशार्थ पधारी । यह नीमाड़ जिलेमें मउकी छावनीसे ८० मील एक देशी रियासत है । वहीं श्री चूलगिरि पर्वत है जहांसे प्रसिद्ध रावणके पुत्र इंद्रजीत और कुंभकरणने मुक्ति प्राप्त की है। पर्वतपर ८४ फुट ऊंची श्री ऋषभदेवकी अति प्राचीन दर्शनीय मूर्ति है जिसको बावन गजाजी कहते हैं। इसकी बड़ी महिमा है। यहां मालवा प्रान्तिक सभाका वार्षिक जल्सा था। सेठजीको बहुत आग्रह करके बुलाया गया पर सेठजी न आ सके । ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी आए थे । मेला पौष सुदी ८ से १५ तक था। दानवीर सेठ हुकमचंदजी आए थे । माघ सुदी १३, १४, १५ को जल्से हुए। खास बात बावनगजाजीके जीर्णोद्धारके लिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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