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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३८७ ता० २९ दिसम्बर १९०४ को मथुराके सेठ द्वारकादामजी अंबाला पधारे। उनका स्वागत बहुत धूमधामसे तीर्थक्षेत्र कमेटीकी हुआ । हाथीपर सवारी नगरमें घूमी। ता : दृढ़ता। ३० दि० की सभामें द्वारकादासजी मभापति हुए तब प्रस्ताव ५ इस विषयका पास हुआ कि प्रस्ताव नं० १० अष्टम वर्षकी दुरुस्ती में महासभा तनवीन करती है कि कमेटी जो तीर्थक्षेत्रोंकी निगरानीके वास्ते महासभाके ७ वे वर्षों नियत हुई थी वह बदस्तूर कायम रहे । उसके कार्यकर्ता भी वे ही रहे तथा महासभा अधिकार देती है कि वह अपनी नियमावली अपने ही मेम्बरोंसे मंजूर कराके कार्रवाई करै । प्र० नं० ६ में महाविद्यालयके लिये एक डेपुटेशन पार्टी बनी जिसने उसी वर्ष मध्यप्रान्तमें चूमकर करीब ६०००) एकत्र किये व धर्मकी प्रभावना की। उस समय भी ६॥ हज़ारका चंदा हुआ जिसमें २०००) लाला सलेखचंद्र किरोडीमलजी रईस नजीबाबादने दिये । जैनगज़ट जो कई वर्णम साप्ताहिकसे पाक्षिक चल रहा था उसकी संतोषजनक कार्रवाई देख फिर साप्ताहिक करनेके लिये प्रस्ताव नं० ८ पास हुआ व प्र० नं. ७में तय हुआ कि आगामी अधिवेशन सहारनपुरमें किया जाय । बम्बई दि० जे० प्रान्तिक सभाके प्रस्तावानुसार सेठ माणि ____ कचंदनीने सभापतिकी हैसियतसे नैनिअर्जीका जबाब व बम्बई योंकी संख्या जेलादिमें भिन्न दिखाने के गवर्नरसे भेट। लिये एक मेमोरियल बम्बई गवर्नरकी सेवाने भेना था जिसका जो जवाब आया वह इस भांति है: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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