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संयोग और वियोग । [२५७ विद्वान ऐसे दो और तीसरा एक नौकर ऐसे तीन आदमीका संयोग मिलाना ।
२-उनके खर्चके वास्ते बन्दोबस्त होना। ३-भोजनकी शुद्धता होनी । ४-जातिकी आज्ञा होनी ।
सबने उस अभिवायमें हां प्रगट की तत्र गोपालदासजीने जानेके योग्य विद्वानोंके नाम कहे-पंडित पन्नालाल झरगदलाल, भूरामलजी जैपुर बो. ए., भाई मेहरचंनी सुनपत । बाद सभा विसर्जन हुई। (जै० बो• अप्रैल १८९३) ये चिट्ठिया भेनी गई जिनपर ब्रह्मसरी शास्त्रीने जो अभिप्राय भेना उसका सारांश यह है:चिकागो जाने में यदि मकारत्रय, जीवदया, तथा पंच नमस्कार
रूप मूल गृहस्थधर्मका लोप नहीं होवै तो ब्रह्मसूरि शास्त्रीका कुछ हानि नहीं है। इस बाबत में प्रमादवशसे समुद्रयात्रा में विचार । अतीचार लगै तोभी उसको प्रायश्चित्त कहा
है। प्रायश्चित्त ग्रंथ अकलंक म्वामीकृत, इंद्रनंदि आचार्यकृत, श्री नंदिगुरु प्रायश्चित्त और भी दोय तीन ग्रंथ हैं उनमें मकारत्रय मूलगुगको प्रायश्चित्त कहा है। विदेशगमनको और समुद्रयान करनेके वास्ते कहीं भी प्रायश्चित नहीं कहा है। महापुराणमें ऐसा लिखा है कि जिस २ उपायसे मार्ग प्रभावना होय वह उपाय मत प्रकाशके वास्ते अवश्य करना। समंतभद्र स्वामीने मत प्रभावनाके वास्ते अनेक देशों में संचार किया था। सो चिकागो अमेरिका खंडमें जाकरके अपने जैनधर्मका प्रसंग करके स्थापन करना बहुत उत्तर है। इसमें शास्त्रको तथा
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