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________________ wwwv vavvvvvvvvv vvvvvvv. . ... . ४०२ ] . अध्याय दशवां । साधारण वस्त्र पहने हुए व ठीक २ बात करना न जाननेवाले बागड़के भाइयोंसे बात करते हुए देखकर शीतलप्रसादके चित्तपर सेठनीकी सादगी, निगर्वता, नातिप्रेम, व धर्मोन्नतिके उत्साहका बड़ा भारी असर पड़ा। जैनगजट अंक २२ ता० १-६-०५में सबसे पहले श्रीमती मगनबाईद्वारा लिखित “ स्त्रीशीक्षा " पर मगनबाईजीका एक छोटासा लेख मुद्रित है। इसमें दिखलाया प्रथम लेख। है कि " मालवा बुंदेलखंड आदि प्रांतों में - मैंने यात्रार्थ पर्यटन करते बड़ी ही आश्चर्यात्पादक किम्बदन्ती सुनी । उस देशमें हमारी जैन स्त्रिय बतलाती हैं कि पढ़नेसे स्त्रियां विधवा होती हैं, दोष लगता है....." इन वाक्योंसे पाठकोंको उस समयका हाल मालूम होगा कि जब लोगोंका स्त्रीशिक्षासे बहुत कम प्रेम था तथा विधवा होनेका भय बहुत घुसा हुआ था, परंतु अब १०-११ वर्षमें यह भय बिलकुल मिट गया है। जैसा शीतलप्रसादजीसे प्रण किया था उसीके अनुसार मगनबाईनीने यह पहला लेख भेजा व आगामी भी भेजती रही थीं। सेठ माणिकचंदजीको यह बात पसन्द न थी कि उनकी स्थापित की हुई कोई भी संस्था अहमदाबादमें बोर्डिग- अधूरी स्थितिमें रहे, इसीलिये वे रात्रि के लिये नया मकान । दिन फिकर में रहते थे कि अहमदाबाद बो डिंगको किरायके मकानसे निकालकर अच्छे अपने खास बोर्डिगमें रखना चाहिये । इसके लिये आप बीचमें अहमदाबाद आये और सेठ हरजीवा रायचंद आमोद वालों को मा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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