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६८८ ] अध्याय बारहवां । भाषण हुए, इन सवका उत्तर देते हुए महाराजने अपने व्याख्यानमें बहुत उपयोगी बातें कहीं "अर्थात् बचपनकी उम्र गीली मिट्टी या हरी लकड़ी के समान होती है । गीली मिट्टीसे जैसी मूर्ति चाहो वैसी बना सकते हैं। हरी लकड़ी निधर चाहो मोड़ सक्ते हो। सु० सुआ-- चरणी होना चाहिये । शारिरीक उन्नति भी करानी चाहिये। जिस लड़केका शरीर अच्छा और निरोग है उसका दिमाग भी तन्दुरस्त होना चाहिये और वह काम भी अच्छा कर सक्ता है । तव दीवान साहाने प्रगट किया कि राजा साहब १५०) वार्षिक आश्रम जब तक कायम रहे तब तक देनेकी कृपा दर्शाते हैं । फिर महाराज साहबने बोर्डिंगका मकान खोला तथा फिरकर देखा । फिर आसन ग्रहण करनेपर सेठ माणिकचन्दनीने नजराना दिया और राना साहबका बहुत उपकार माना । पुष्पादिके सम्मानके पीछे जलता १०। बजे समाप्त हुआ। दिनको उपदेशक सभा हुई। आसौन सुदी १४को १० महाशयोंकी स्थानीय प्रबन्धकारिणी कमेटी नियत हुई । सभापति सेठ कस्तूरचन्द व सेक्रेटरी मि० कांतीलाल नाणावटी एम. ए. हुए। रतलामका काम समाप्त करके सर्व मंडली अहमदाबाद आई।
और आसौज सुदी १५ को सबेरे मि० अहमदावाद बोर्डिंग- जीवनलाल वनराय देशाई बैरिष्टरके सभाका वार्षिकोत्सव। पतित्वमें सेठ प्रेमचन्द मोतीचन्द दिगम्बर
जैन बोर्डिंग स्कूलका नवमा वार्षिकोत्सव हुआ। लल्लूभाई लक्ष्मीचंद मंत्रीने रिपार्ट सुनाई। फिर मूलचंद किसनदासजीने परीख लल्लुभाई प्रेमानन्द एल. सी. ई. को मानपत्र
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