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अध्यायं दशवां । द्वेषके सर्व कौमें भगवत्के दर्शनसे आनन्दित होती थीं। ता. १६ जनवरीको सेठ माणिकचंदने सर्व मुख्य भाइयों को लेजाकर सेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिगका निरीक्षण कराया तथा वहाँ बोर्डिंगकी ओरसे एक सभा हुई। सभापति लाला बद्रीदास पानीपत हुए। पंडित मंगतराय व चोखेलाल खजांचीने बोर्डिंग देखकर हर्ष प्रगट किया। सभापतिने १०) दस दस रुपये मासिककी एक संस्कृत व १ इंग्रेजी विभागमें ऐसी दो छात्रवृतिए १ वर्षको दी । बाबू शीतलप्रसादनीको स्त्रीशिक्षा प्रचारकी बहुत रुचि
थी। यह जैनगनटमें इसकी उत्तेजनाके बरास्त्रीशिक्षाके लिये अ- बर लेख दिया करते थे। इनको विश्वास ध्यापिकाओंका था कि विना स्त्रीशिक्षाके प्रचारके समान प्रबन्ध। कभी सुधर नहीं सक्ता । लखनऊ में इन्होंने
श्रीमती पार्वतीबाईको कुछ विद्याका सहारा देकर स्त्रीशिक्षाके प्रचार में उत्तेजित किया था। फिर जबसे मगनबाईजीका समागम हुआ इनको बारबार लेख लिखने, उनको शुद्ध करने, व्याख्यान देने व स्त्रीशिक्षा-प्रचार में तन मन धन लगानेकी प्रेरणा की तथा तात्त्विक दृष्टिके लिये श्री अर्थप्रकाशिकाजीका स्वाध्याय कराया। नित्य बंगलेपर रहते हुए शीतलप्रसादनीका मगनबाईजीको यही उपदेश होता था कि अध्यापिकाएं जबतक तयार न होंगी तबतक कन्याशालाएं खुल नहीं सक्तीं। इससे बम्बई में एक आश्रम खोला जाय उसमें विधवा व श्राविकाओंको रखकर सिखाया जाय । मगनबाईजीको यह बात पसंद आगई थी, पर जब
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