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________________ महती जाति सेवा प्रथम भाग । [४३३ सेठ माणिकचंदनीसे मगनबाई वर्णन करती तब सेठजीके ध्यानमें यह बात यकायक नहीं आती थी। एक दिन सबेरे जब मंदिरजीसे स्वाध्याय करके सेठनी दीवानखाने में बैठे थे तब शीतलप्रसादजीने मगनबाईजीके सामने सेठजीको घन्टाभर खूब समझाके कहा कि आप यदि जैन जातिका उद्धार करना चाहते हों तो जबतक माताएं धर्मात्मा व सुआचरणी नहीं होंगी, समाजका उद्धार नहीं हो सक्ता; क्योंकि जबतक माताएं अच्छी न होंगी पुत्र योग्य नहीं पैदा हो सक्ते । स्त्रीशिक्षाके लिये अध्यापिकाएं तय्यार करनेका प्रयत्न करेना चाहिये । सेठजीने कहा कि बाहरसे कोई आनेवाली नहीं हैं। तब बहुत जोर देकर शीतलप्रसादजीने कहा कि आप इसका उद्यन तो करें । तब सेठजीने अपने एक मकानमें २, ४ कोठरियां खाली कर दी और मगनबाईनीको आज्ञा दी कि पढ़नेवालियोंको बुलाओ फिर और प्रबन्ध हो । तब मगनबाईजीने ता. १६ फर्वरी १९०६ के जैनगजटमें यह नोटिस प्रसिद्ध किया कि बम्बईमें श्राविकाश्रम खोलनेका प्रबन्ध हुआ है, फार्म मंगाकर श्राविकाएं भर कर भेजें तथा स्वीकारतापर यहाँ आ । यहां उनके भोजनपान आदि व शिक्षाका कुल प्रबन्ध किया गया है। यह नोटिस वर्तमानमें चलने वाले श्राविकाश्रमका बीज भूत है। मगनबाईजीको यह भी प्रेरणा की गई कि वह पढ़ी लिखी स्त्रियोंसे पत्रव्यवहार करे कि वे अपने २ बाहरकी पढ़ी लिखी यहां स्त्रीशिक्षाकी उत्तेजनामें उद्योग करें स्त्रियोंसे पत्रव्यवहार । इस पत्रव्यवहारके प्रभावसे श्रीमती गंगादेवी मुरादाबादने मगनबाईजीको फवरी मासमें लिखा कि मैंने मंदिरजीमें ८ से ९ तक स्त्रियोंको २८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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