________________
४० ]
अध्याय दूसरा।
सर्व ऊपर लिखित सूरत गद्दीके भट्टारकोंसे बिलकुल मिलते हैं। सुरत चंदावाडीके मंदिरमें वादिचंद्र भट्टारक प्रतिष्ठित प्रतिमा मौजूद है। ७-नौसारी-यहां अब कोई नहीं है न जैन मंदिर है परन्तु
___ संवत् १९१३ तक यहांपर मंदिरजी था । (-सूरत-यहां पहले ५ जातियोंके जैनी थे अब वीसा हुंबड़के २० घर, दसा हुंदड़के ७५ घर व नरसिंहपुराके २० घर हैं। तो भी पंच पांच गोटकी कहलाती है । रायकवाल व मेवाड़ा नहीं है। यद्यपि मेवाड़ा लोग प्रगटपने वैष्णव हो गये हैं । सूरत शहरमें १०० वर्ष पहले दिगम्बर जनियोंकी संख्या ७०० के अनुमान थी। पहले इनके खास रहनेके मुहल्ले सगरामपुरा, काजीका मैदान और नानावट भी थे। यहां अब कोई घर नहीं है। अब हरिपुरा, नवापुरा, खपाटियाचकला आदिमें रहनेवाले अब केवल २५० हैं। श्वेताम्बर जैनी पहले १२००० थे अब ३००० के अनुमान है। वर्तमानमें श्वे. जैनियोंके ५० मंदिर व ७५ घर चैत्यालय और दि० जैनियों के ६ मंदिर व ९ घर चैत्यालय हैं।
इन छह मंदिरों में सर्वसे पुराना मंदिर खपाटिया चकलेमें चंदावाड़ी धर्मशालाके पास छोटा जिन मंदिर है जिसमें एक भौंरा है। इस भौ रेमें ३ बड़ी अवगाहनाकी भव्य प्रतिमाएं विराजमान थीं सो अब ऊपर बेदी बनाकर स्वर्गवासी सेठ चुन्नीलाल झवरचंद जौहरी, सहायक महामंत्री-" भारतवर्षीय दि जैनतीर्थक्षेत्र कमेटी " द्वारा स्थापित की गई हैं । इनमेंसे दोपर लेख हैं जो ऐसी भाषामें हैं कि पढ़ा नहीं जाता। श्रीपार्श्वनाथकी प्रतिबिम्बपर संबत १२३५ वैशाख
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org