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अध्याय तेरहवां । श्रीमती विदुषी जैनगुणभूषण मगनबाई प्रति जग्गीमलका
धर्मस्नेह पूर्वक जयजिनेन्द्र ! कलके रोन हमने अति हृदयविदारक महान् शोककारक. यह अपने भाईयों द्वारा मालुम हुआ कि सेठ माणिकचन्द्रजीका अचानक देवलोक हो गया। अश्रुधारा वह चली, कलेना काँप उठा, हे विकराल काल ! तूने यह क्या किया ? वास्तव में सेठजी जैन सम्प्रदायमें एक अपूर्व पुरुष थे । इनके गुणानुवाद करना, इनकी कीर्तिको गान!, जैन सम्प्रदायको जो २ लाभ हुए हैं उसका वर्णन करना, मेरी लेखनीमे बाहर है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आपको और आपको मातादिको अतिशोकदायक बात है मगर आप तत्ववेत्ता हो । संपारकी दशा कैसी नि:मार है आप जानो हो इसलिये सब कुटम्बी जनोंको समझाकर संतोषित करें और आप, स्वयं भी संतोष प्राप्त करें।
आपका कृपाभिलापी, जग्गीमल जैन ।
परमस्नेही परमविवेकी श्रीमती मगनव्हेन,
सप्रेम सविनय जयजिनेंद्र. आजे सवारे एकदम ओचिंता आपना बापाजीना स्वर्गवास थवाना समाचार सांभळी आश्चर्य अने दिलगीरीमा गरकाव थई गया छिए के आ ओचितुं शुं थई गयुं ! बे दिवसपर तो एमनो कागळ आव्यो हतो ने एकदम शुं मांदगी थई ने ओचितुं आ शुं थई गयु ! आ गमखार बनावथी आपना कुटुंब ऊपर तेम आखा दिगम्बर जैन कोम ऊपर जबरदस्त फटको लाग्यो छे. अमे तो एम कहीए छिए आखी दिगम्बरी कोम रंडाई छे. आपने मेलाप थयो हतो के नहि के श्राविका
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